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अनुकरण पर गुजरात में हर प्रकार की उन्नति करने का इच्छुक था । उस समय मालव में राजा भोज का सरस्वतीप्रेम प्रसिद्ध था । भोजराज संस्कृत का स्वयं प्रकाण्ड पण्डित था । विद्वानों को राजाश्रय देकर शैक्षणिक और सांस्कृतिक विकास के लिए अहर्निश प्रयास करता रहता था । इस कार्य में उसे हेमचन्द्र से अपूर्व सहयोग मिला । हैमी प्रतिभा का स्पर्श पा गुजरात की सांस्कृतिक एवं साहित्यिक चेतना उत्तरोत्तर विकसित होने लगी ।
सिद्धराज के आदेश से हेमचन्द्र ने सिद्धहैम नाम का एक नया व्याकरण ग्रन्थ लिखा, यह ग्रन्थ गुजरात का व्याकरण कहलाता है । इस मन्थ को तैयार करने के लिए कश्मीर से व्याकरण के आठ ग्रन्थ मंगवाये गये थे' ।
आचार्य हेमचन्द्र और सिद्धराज समवयस्क थे। सिद्धराज का जन्म हेमचन्द्र से दो वर्ष पूर्व हुआ था। दोनों में घनिष्ठ मित्रता थी । सिद्धराज राष्ट्रीय नेता, शासक, संरक्षक के रूप में सम्माननीय थे तो हेमचन्द्र धार्मिक, चारित्रिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से प्राणदायी थे ।
आचार्य हेमचन्द्र और कुमारपाल
हेमचन्द्र का कुमारपाल के साथ गुरु-शिष्य का सम्बन्ध था । उन्होंने सात वर्ष पहले ही कुमारपाल को राज्य प्राप्त होने की भविष्यवाणी की थी । एक बार जब राजकीय पुरुष उसे पकड़ने आये तो हेमचन्द्र ने उसे ताड़पत्रों मैं छिपा दिया था और उसके प्राणों की रक्षा की थी। कहा जाता है कि सिद्धराज को कोई पुत्र नहीं था; इससे उनके पश्चात् गढ़ी का झगड़ा खड़ा हुआ और अन्त में कुमारपाल नामक व्यक्ति वि० सं० ११९४ में मार्गशीर्ष कृष्ण १४ को राज्याभिषिक्त हुआ । सिद्धराज जयसिंह कुमारपाल को मारने के प्रयत्न में था, पर वह किसी प्रकार बच गया । राजा बनने के समय कुमारपाल की अवस्था ५० वर्ष की थी। अतः उसने अपने अनुभव और पुरुषार्थ द्वारा
१ देखें - पुरातत्त्व (पुस्तक चतुर्थं ) - गुजरात नुं प्रधान व्याकरण पृ० ६१ । गौरीशंकर ओझा ने अपने राजपूताने के इतिहास भाग १ पृ० १९६ पर लिखा है कि 'जयसिंह ने यशोवर्मा को वि० सं० ११९२ - ११९५ के मध्य हराया था । उज्जयिनी के शिलालेख से ज्ञात होता है कि मालवा वि० सं० ११९५ ज्येष्ठ वदी १४ को सिद्धराज जयसिंह के अधीन था ।' इस उल्लेख के आधार पर 'सिद्ध हैम' व्याकरण की रचना सं० १९९० के लगभग हुई होगी । बुद्धि प्रकाश, मार्च १९३५ के अंक में प्रकाशित
२ -- नागरीप्रचारिणी पत्रिका भाग ६ पृ० ४४३-४६८
(कुमारपाल को कुल में हीन समझने के कारण ही सिद्धराज उसे मारना चाहता था । ) २ अ० चि० भू०