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समुखं लपनं संलापः, सम्मुखं कथनं संकथा (भीषिभूषि-५।३।१०९) इत्यङ्।
-२०१८९ मन्यते अनया मतिः अर्थनिश्चयः, बुध्यते अनया बुद्धिः, ध्यायति दधाति वा धीः ('दिद्युत्-' ५।२।४३ ) इति क्विबन्तो निपात्यते । धृष्णोत्यनया धिषणा (धषिवहेरिश्वोपान्त्यस्य; उणा० १८९) इत्यणः ।
-२१२२२ तत्वानुगामिनी मतिः, पण्यते स्तूयते पण्डा ( पञ्चमाडः, उणा० १६८) इति डः।
-२१२२४ नियतं द्वान्तीन्द्रियाणि अस्यां निद्रा, प्रमीलन्तीन्द्रियाण्यस्यां प्रमीला
-२१२२७ पण्डते जानाति इति पण्डितः, पण्डा बुद्धिः संजाता अस्येति वा तारकादित्वादितः पण्डितः।
छयति छिनत्ति मूर्खदुष्टचित्तानि इति छेकः (निष्कतुरुष्क-उणा० २६) इति कान्तो निपात्यते । विशेषेण मूर्खचित्तं दहति इति विदग्धः -३७
वाति गच्छति नरं वामा ('अकर्तरि-' उणा० ३३८) इति मः, यद्वा वामा विपरीतलक्षणया; शृङ्गारिखेदनाद्वा ।
-३।१६८ विगतो धवो भर्ता अस्याः विधवा
-३।१९४ दधते बलिष्ठतां दधि.....", ('पदिपठि-' उणा० ६०७) इति इः।-३७०
उपर्युक्त उदाहरणों से स्पष्ट है कि शब्दों की व्युत्पत्तियाँ कितनी सार्थक प्रस्तुत की गयी हैं। अतः स्वोपज्ञवृत्ति भाषा के अध्ययन के लिए बहुत आवश्यक है। शब्दों की निरुक्ति के साथ उनकी साधनिका भी अपना विशेष महत्व रखती है। प्रस्तुत हिन्दी संस्करण
यह हिन्दी संस्करण भावनगर संस्करण के आधार पर प्रस्तुत किया गया है। इसमें मूल श्लोकों के अनुवाद के साथ स्वोपज्ञवृत्ति में आये हुए शब्दों का भी हिन्दी अनुवाद दिया गया है। अनुवादक और सम्पादक श्रीमान् पं० हरगोविन्द शास्त्री, व्याकरण-साहित्याचार्य हैं। आपने शब्दों की प्रातिपदिक अवस्था का भी निर्देश किया है। आवश्यकतानुसार विशेष शब्दों का लिङ्गादि निर्णय, विमर्श द्वारा गूढ़ स्थलों का स्पष्टीकरण, स्थल-स्थल पर टिप्पणी देकर विषय की सम्पुष्टि एवं शेषस्थ तथा स्वोपज्ञवृत्ति पर आधृत शब्दों के अतिरिक्त यौगिक और अन्यान्य शब्दों का अनुवाद में समावेश कर दिया है। सभी प्रकार के शब्दों की अकारादि क्रमानुसार अनुक्रमणिका एवं विषय-सूची आदि
३ अ० चि० भू०