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के रहने से ग्रन्थ और अधिक उपयोगी बन गया है। इस प्रकार राष्ट्रभाषा हिन्दी के भाण्डार की इस कोश द्वारा प्रचुर समृद्धि हुई है ।
श्री पं० हरगोविन्दजी शास्त्री अनुभवी एवं सुयोग्य विद्वान् हैं। अब तक आपने अमरकोष, नेषधचरित, शिशुपालबध, मनुस्मृति एवं रघुवंश आदि ग्रन्थों का हिन्दी अनुवाद किया है। आपकी प्रतिभा का स्पर्श पा यह अनुपम ग्रन्थ सर्व साधारण के लिए सुपाठय बना है। मैं उनके इस अथोर परिश्रम के लिए उन्हें साधुवाद देता हूँ और आशा करता हूँ कि आपके द्वारा माँ भारती का भाण्डार अहर्निश वृद्धिङ्गत होता रहेगा ।
इस ग्रन्थ के प्रकाशक लब्धप्रतिष्ठ श्री जयकृष्णदास हरिदास गुप्त, अध्यक्षचौखम्बा संस्कृत सीरीज तथा चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी हैं। अब तक इस संस्था द्वारा लगभग एक सहस्र संस्कृत ग्रन्थों का प्रकाशन हो चुका है 1 इस उपयोगी कृति के प्रकाशन के लिए मैं उन्हें भी साधुवाद देता हूँ । साथ ही मेरा इतना विनम्र अनुरोध है कि अगले संस्करण में स्वोपज्ञवृत्ति को अविकल रूप से स्थान देना चाहिए । इस वृत्ति का अनेक दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण स्थान है। विद्वानों और जिज्ञासुओं के लिए वृत्ति में ऐसी प्रचुर सामग्री है, जिसका उपयोग शोध के विभिन्न क्षेत्रों में किया जा सकता है ।
इस संस्करण को शिक्षण संस्थाओं, पुस्तकालयों, छात्रों एवं अध्यापकों के बीच पर्याप्त आदर प्राप्त होगा ।
विजया दशमी २०२० वि० सं०
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- नेमिचन्द्र शास्त्री