SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 86
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ देवकाण्ड : २ ] 'मणिप्रभा' व्याख्योपेतः – १ सन्ध्या तु पितृसूर स्त्रिसन्ध्यं तूपवैणवम् ॥ ५४ ॥ ३ श्राद्धकालस्तु कुतपोऽष्टमो भागो दिनस्य यः 1 1 ४ निशा निशीथिनी रात्रिः शर्वरी क्षणदा क्षपा ॥ ५५ ॥ त्रियामा यामिनी भौती तमी तमा विभावरी रजनी वसतिः श्यामा वासतेयी तमस्विनी ॥ ५६ ॥ उषा दोषेन्दुकान्ता५ऽथ तमिस्रा दर्शयामिनीं । ६ ज्योत्स्नी तु पूर्णिमारात्रि णरात्रो निशागणः ॥ ५७ ॥ = पक्षिणी पक्षतुल्याभ्यामहोभ्यां वेष्टिता निशा । गर्भकं रजनीद्वन्द्वं १० प्रदोषो यामिनीमुखम् ॥ ५८ ॥ ४१ १. 'सन्ध्या' के २ नाम हैं - सन्ध्या, पितृसूः ॥ २. 'सहोक्त ( साथमें कहे गये ) तीनों सन्ध्याकाल' ( प्रातः सन्ध्या, मध्याह्न सन्ध्या तथा सायं सन्ध्या ) के २ नाम है — त्रिसन्ध्यम्, उपवैणवम् ॥ ३. 'श्राद्धके समय' ( दिन के आठवें भाग ) के २ नाम हैं - श्राद्धकालः, कुतप: (पुन) ।। ४. ' रात' के २० नाम हैं - निशा, निशीथिनी, रात्रि : ( + रात्री ), शर्वरी, क्षणदा, क्षपा, त्रियामा, यामिनी ( यौ० - यामवती ), भौती, तमी, तमा, विभावरी, रजनी, वसतिः, श्यामा, वासतेयी, तमस्विनी, उषा, दोषा ( + २ अव्य० भी ), इन्दुकान्ता (नक्तम्, अव्य०, तुङ्गी ) ॥ शेषश्चात्र - निशि चक्रभेदिनी । निषद्वरी निशिथ्या निट् घोरा वासरकन्यका । शताक्षी राक्षसी याम्या पूताचिस्तामसी तमिः ॥ शार्वरी क्षणिनी नक्ता पैशाची वासुरा उशाः । ५. 'अँधेरी रात या श्रमावस्थाकी रात के दर्शयामिनी ॥ २ नाम हैं - तमिस्रा, २ नाम हैं— ज्योत्स्नी, ६. 'उजेली रात या पूर्णिमाको रात के पूर्णिमा रात्रिः ॥ ७. 'निशा - समूह' के २ नाम हैं—गणरात्रः, निशागणः ॥ ८. 'दो पक्षोंकी मध्यवाली रात' (पूर्णिमा तथा कृष्णपक्ष की प्रतिपत् तिथियों और अमावस्या तथा शुक्लपक्षकी प्रतिपत् तिथियों के बीचवाली रात ) का १ नाम है - पक्षिणी । ( इसी प्रकार उक्त दोनों तिथियों के मध्यवाले दिनका १ नाम है - पक्षी क्षिन् ) ।। ६. 'दो रात्रियोंके समुदाय' के २ नाम हैं - गर्भकम्, रजनीद्वन्द्वम् ॥ . १०. 'प्रदोषकाल' ( रात्रि के प्रारम्भ काल ) के २ नाम हैं -- प्रदोष:, यामिनीमुखम् (+ रजनीमुखम्, निशामुखम् ) ॥
SR No.002275
Book TitleAbhidhan Chintamani
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Hargovind Shastri
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1966
Total Pages566
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy