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________________ '१५८ अभिधानचिन्तामणिः -१मार्टिः स्याद् मार्जना मृजा ।। ३०० ॥ वासयोगस्तु चूर्ण स्यात् ३पिष्टातः पटवासकः । ४गन्धमाल्यादिना यस्तु संस्कारः सोऽधिवासनम् ।। ३०१ ॥ . पनिवेश उपभोगोऽथ स्नानं सवनमाप्लवः। ७कर्परागुरुकक्कोलकस्तूरीचन्दनवैः ॥३०२ ॥ स्याद यक्षकर्दमो मिर्तिर्गात्रानुलेपनी। चन्दनागरुकस्तूरीकुङ्कुमैस्तु चतुःसमम् ।। ३०३ ॥ १०अगुवंगरुराजाहं लोहं कृमिजवंशिके। .. अनार्यजं जोङ्गकच१. 'स्वच्छ ( साफ ) करना'के ३ नाम है-मार्टिः, मार्जना मृजा ॥ . २. 'सुगन्धित (सुवासित ) करनेवाले चूर्ण'के २ नाम है-वासयोगः, चूर्णम् (पुन)॥ ३. 'कपड़ेको सुवासित करनेवाले फूल या चूर्णादि'के २ नाम हैंपिष्टातः, पटवासकः ॥ ४. 'सुगन्धित पदार्थ या माला श्रादिसे. सुवासित करने'का १ नाम । है-अधिवासनम् । ५. 'उपभोग'के २ नाम हैं-निवेशः, उपभोगः ॥ ६. 'स्नान, नहाना'के ३ नाम है-स्नानम् , सवनम्, आप्लवः (+आप्लावः)॥ ७. कर्पूर, अगर, ककोल, कस्तूरी और · चन्दनद्रवको मिभितकर बनाया गया ( सुगन्धपूर्ण ) लेप-विशेष'का १ नाम है-यक्षकदमः । विमर्श-धन्वन्तरिका कथन है कि-कुङ्कम, अगर, कस्तूरी, कपूर और चन्दनको मिलाकर बनाये गये अत्यन्त सुगन्धयुक्त लेपविशेषका नाम 'यदकर्दम' है ।। ८. 'वत्ती' ( नाटकादि में पात्रोंके शरीरसंस्कारार्थ लगाये जानेवाले लेपविशेषकी वत्ती'के २ नाम है-वतिः ( स्त्री), गात्रानुलेपनी ॥ ६. 'समान भाग चन्दन, अगर, कस्तूरी और कुछ मके मिश्रणसे बनाये गये और लेप विशेष'का १ नाम है --चतु:समम् ।। १०. 'अगर के ८ नाम है--अगुरु, अगरु (२ पुन ), राजाईम , लोहम् (पु न ), कृमिजम् (+कृमिजग्धम् ), वंशिका (स्त्री न), अनार्यनम् , जोङ्गकम् । शेषश्चात्र-अगुरौ प्रवरं शृङ्गशीर्षकं मृदुलं लघु । वरद्रुमः परमदः प्रकरं गन्धदारु च ॥
SR No.002275
Book TitleAbhidhan Chintamani
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Hargovind Shastri
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1966
Total Pages566
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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