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________________ ( २६ ) शब्द-संकलन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। चिपटी नाकवाले के नतनासिक, अवजाट, अवटीट और अवभ्रट; नुकीली नाकवाले के लिए खरणस; छोटी नाकवाले के लिए ‘नःचुद्र, खुर के समान बड़ी नाकवाले के लिए खुरणस एवं ऊंची नाकवाले के लिए उन्नस शब्द संकलित किये गये हैं। • पति-पुत्र से हीन स्त्री के लिए निर्वीरा (३।१९४); जिस स्त्री के दाढ़ी या मूंछ के बाल हों, उसको नरमालिनी ( ३।१९५); बड़ी शाली के लिए कुली (३।२१८), और छोटी शाली के लिए हाली, यन्त्रगी और केलिकुंचिका (३।२१९) नाम आये हैं। छोटी शाली के नामों को देखने से अवगत होता है कि उस समय में छोटी शाली के साथ हंसी-मजाक करने की प्रथा थी । साथ ही पत्नी की सयु के पश्चात् छोटी शाली से विवाह भी किया जाता था। इसी कारण इसे केलिकुञ्चिका कहा गया है । दाहिनी और बायीं आँखों के लिए पृथक-पृथक शब्द इसी कोश में आये हैं। दाहिनी आँख का नाम भानवीय और बायीं आँख का नाम सौम्य (३।२४०) कहा गया है। इसी प्रकार जीभ की मैल को कुलुकम् और दाँत की मैल को पिप्पिका ( ३।२९६) कहा गया है। मृगचर्म के पंखे का नाम धविअम् और कपड़े के पंखे का नाम वालावर्तम् (३॥३५१-५२) आया है। नाव के बीचवाले डण्डों का नाम पोलिन्दा; ऊपर वाले भाग का नाम मङ्ग एवं नाव के भीतर जमे हुए पानी को बाहर फेंकनेवाले चमड़े के पात्र का नाम सेकपात्र या सेचन (३२५४२) बताया है। ये शब्द अपने भीतर सांस्कृतिक इतिहास भी समेटे हुए हैं । छप्पर छाने के लिए लगायी गयी लकड़ी का नाम गोपानसी (४७५); जिसमें बांधकर मथानी घुमायी जाती है, उस खम्भे का नाम विष्कम्भ (१८९); सिक्का आदि रूप में परिणत सोना-चाँदी, ताँबा आदि सब धातुओं का नाम रूप्यम्; मिश्रित सोना-चाँदी का नाम धनगोलक (४११२-११३); कुँआ के ऊपर रस्सी बाँधने के लिए काष्ठ आदि की बनी हुई चरखी का नाम तन्त्रिका (४१५७); घर के पास वाले बगीचे का नाम निष्कुट; गाँव या नगर के बाहर वाले बगीचे का नाम पौरक (४।१७८); क्रीड़ा के लिए बनाये गये बगीचे का नाम आक्रीड या उद्यान (१९७८); राजाओं के अन्तःपुर के योग्य घिरे हुए बगीचे का नाम प्रमदवन (१७९); धनिकों के बगीचे का नाम पुष्पवाटी या वृक्षवाटी (४।१७९) एवं छोटे बगीचे का नाम क्षुद्राराम या प्रसीदिका (४११७९) आया है। इसी प्रकार १. अ० चि० ३ कांड ११५ श्लोक
SR No.002275
Book TitleAbhidhan Chintamani
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Hargovind Shastri
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1966
Total Pages566
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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