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मशाले, अंग-प्रत्यंग के नाम, मालाएँ, सेना के विभिन्न भाग, वृक्ष, लता, पशु, पक्षी एवं धान्य आदि के अनेक नवीन नाम आये हैं ।
सांस्कृतिक दृष्टि से इस कोश का अत्यधिक मूल्य है। इसमें व्याकरण की विशिष्ट परिभाषा बतलाते हुए लिखा है
प्रकृतिप्रत्ययोपाधिनिपातादिविभागशः । यदान्वाख्यानकरणं शास्त्रं व्याकरणं विदुः ॥
- २।१६४ की स्वोपज्ञवृत्ति
अर्थात् - प्रकृति-प्रत्यय के विभाग द्वारा पदों का अन्वाख्यान करना व्याकरण है | व्याकरण द्वारा शब्दों की व्युत्पत्ति स्पष्ट की जाती है । व्याकरण के - सूत्र संज्ञा, परिभाषा, विधि, निषेध, नियम, अतिदेश एवं अधिकार इन सात भागों में विभक्त हैं । प्रत्येक सूत्र के पदच्छेद, विभक्ति, समास, अर्थ, उदाहरण और सिद्धि ये छः अङ्ग होते हैं ।
इसी प्रकार वार्तिक ( २।१७० ), टीका, पञ्जिका ( २।१७० ), निबन्ध, संग्रह, परिशिष्ट ( २।१७१ ), कारिका, कलिन्दिका, निघण्टु ( २।१७२ ), इतिहास, प्रहेलिका, किंवदन्ती, वार्ता ( २।१७३ ), आदि की व्याख्याएँ और परिभाषाएँ प्रस्तुत की गयी हैं । इन परिभाषाओं से साहित्य के अनेक सिद्धान्तों पर प्रकाश पड़ता है ।
प्राचीन भारत में प्रसाधन के कितने प्रकार प्रचलित थे, यह इस कोश से भलीभाँति जाना जा सकता है। शरीर को संस्कृत करने को परिकर्म ( ३।२९९ ), उबटन लगाने को उत्सादन ( ३।२९९ ), कस्तूरी- कुंकुम का लेप लगाने को अङ्गराग, चन्दन, अगर, कस्तूरी और कुंकुम के मिश्रण को चतुःसमम्; कर्पूर, अगर, कंकोल, कस्तूरी और चन्दनद्रव को मिश्रित कर बनाये गये लेप-विशेष को यज्ञकर्दम एवं शरीर-संस्कारार्थ लगाये जानेवाले लेप का नाम वर्ति या गात्रानुलेपनी कहा गया है । मस्तक पर धारण की जानेवाली
फूल की माला का नाम माल्यम्; बालों के बीच में स्थापित फूल की माला का नाम गर्भका; चोटी में लटकनेवाली फूलों को माला का नाम प्रभ्रष्टकम्, सामने लटकती हुई पुष्पमाला का नाम ललामकम्, छाती पर तिर्धी लटकती हुई पुष्पमाला का नाम वैकक्षम, कण्ठ से छाती पर सीधे लटकती हुई फूलों की माला का नाम प्रालम्बम्, शिर पर लपेटी हुई माला का नाम आपीड, कान पर लटकती हुई माला का नाम अवतंस एवं स्त्रियों के जूड़े में लगी हुई