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( २८ ) (६) तरवारि (३।४४६)-ब्रजभाषा में तरवार, राजस्थानी में तलवार तथा गुजराती में तरवार ।
(७) जंगलो निर्जलः (१९)-ब्रजभाषा में जङ्गल, हिन्दी में जङ्गल ।
(८) सुरुङ्गा तु सन्धिला स्याद् गूढमार्गो भुवोऽन्तरे (४५१)-ब्रज. भाषा, हिन्दी तथा गुजराती तीनों भाषाओं में सुरंग ।
(९) निश्रेणी त्वधिरोहणी (४१७९)-ब्रजभाषा में नसेनी, गुजराती में नीसरणी।
(१०) चालनी तितउ (४८४ )-व्रजभाषा, राजस्थानी और गुजराती में चालनी, हिन्दी में चलनी या छलनी।
(११) पेटा स्यान्मञ्जूषा (४८१) राजस्थानी में पेटी, गुजराती में पेटी, पेटो तथा ब्रजभाषा में पिटारी, पेटो।
इस कोश की चौथी विशेषता यह है कि इसमें अनेक ऐसे शब्द आये हैं, जो अन्य कोशों में नहीं मिलते। अमरकोश में सुन्दर के पर्यायवाचीसुन्दरम्, रुचिरम्, चारु, सुषमम, साधु, शोभनम्, कान्तम्, मनोरमम्, रुच्यम्, मनोज्ञम्, मंजु, और मंजुलम् ये बारह शब्द आये हैं। हेम ने इसी सुन्दरम् के पर्यायवाची चारुः, हारिः, रुचिरम्,मनोहरम, वल्गुः, कान्तम्, अभिरामम्, बन्धुरम्, वामम्, रुच्यम्, शुषमम्, शोभनम्, मंजुलम्, मंजुः, मनोरमम्, साधुः, रम्यम्, मनोरमम, पेशलम्, हृद्यम्, काम्यम्, कमनीयम्, सौम्यम्, मधुरम् और प्रियम् ये २६ शब्द बतलाये हैं । इतना ही नहीं, हेम ने अपनी वृत्ति में 'लडह' देशी शब्द को भी सौन्दर्यवाची ग्रहण किया है। इस प्रकार आचार्य हेम ने एक ही शब्द के अनेक पर्यायवाची शब्दों को ग्रहण कर अपने इस कोश को खूब समृद्ध बनाया हैं । सैकड़ों ऐसे नवीन शब्द आये हैं, जिनका अन्यत्र पाया जाना संभव नहीं । यहाँ उदाहरण के रूप में कुछ शब्दों को उपस्थित किया जाता है
जिसके वर्ण या पद लुप्त हों-जिसका पूरा-पूरा उच्चारण नहीं किया गया हो, उस वचन का नाम प्रस्तम् और थूकसहित वचन का नाम अम्बूकृतम् आया है । शुभवाणी का नाम कल्या; हर्ष-क्रीड़ा से युक्त वचन के नाम चर्चरी, चर्मरी एवं निन्दापूर्वक उपालम्भयुक्त वचन का नाम परिभाषण आया है। जले हुए भात के लिए भिस्सटा और दग्धिका नाम आये हैं। गेहूँ के आटे के लिए समिता ( ३।६६) और जौ के आटे के लिए चिक्कस (३।६६) नाम आये हैं। नाक की विभिन्न बनावट वाले व्यक्तियों के विभिन्न नामों का उल्लेख भी
१.३ कांड अ० चि० ६० श्लो.