________________
xo
देवकाण्ड: २] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः
-१ कल्पौ तु ते नृणाम् ।। २ मन्वन्तरं तु दिव्यानां युगानामेकसप्ततिः ।। ७४ ।। . ३ कल्पो युगान्तः कल्पान्तः संहारः प्रलयः क्षयः ।
संवत्तः , परिवर्तश्च सससुप्तिजिहानकः ।। ७५ ।। ४ तत्कालस्तु तदात्वं स्या५त्तज्जं सान्दृष्टिकं फलम । . ६ आयतिस्तूत्तरः काल ७ उदर्कस्तद्भवं फलम् ।। ७६ ॥ ८ व्योमान्तरिक्षं गगनं घनाश्रयो विहाय आकाशमनन्तपुष्करे ।
अभ्रंसुराभ्रोडुमरुत्पथोऽम्बरं खंद्योदिवौ विष्णुपदं वियन्नभः॥ ७७॥ बीस हजार वर्ष = १ चतुर्युग ( सत्ययुग, त्रेता, द्वापर तथा कलियुग) = दिव्य ( देवोंका) १ युग होता है। उक्त दो हजार दिव्य युगकी ब्रह्माकी दिन-रात होती है अर्थात् एक हजार दिव्य युगका ब्रह्माका दिन तथा एक हजार दिव्ययुगकी ब्रह्माकी रात होती है। इस प्रकार मनुष्योंके ८६४००००००० आठ अरब चौंसठ करोड़ वर्षोंकी ब्रह्माकी 'दिन-रात' होती है अर्थात् मनुष्योंके ४३२००००००० चार अरब बत्तीस करोड़ वर्षोंका 'ब्रह्माका दिन' तथा उतने ही मानव वर्षों की 'ब्रह्माकी रात' होती है।
१. वे ही दो हजार देव वर्ष या ब्रह्माकी दिन-रात मनुष्योंका कल्पद्वय ( दो कल्प ) अर्थात् 'स्थिति तथा प्रलयकाल होता है । इसमें ब्रह्माका दिन मनुष्योंका स्थितिकाल और ब्रह्माकी रात मनुष्योंका प्रलयकाल होती है ।
२. देवोंके ७१ युगोंका ( मनुष्योंके ३०६७२०००० तीस करोड़ सरसठ लाख बीस हजार वर्षोंका ) एक 'मन्वन्तर' ( १४ मनुओंमें से प्रत्येक मनुका स्थिति-काल.) होता है। विशेष जिज्ञासुओंको 'अमरकोष'की मत्कृत 'मणिप्रभा' नामकी हिन्दी टीका तथा टिप्पणी देखनी चहिए ॥ . ३. 'कल्प, प्रलय'के १० नाम हैं-कल्पः, युगान्तः, कल्पान्तः, संहारः, प्रलयः, क्षयः, संवर्तः, परिवतः, समसुप्तिः, जिहानकः । ... ' ४. 'उस समयके भाव' अर्थात् उस समयवालेके २ नाम हैं-तत्कालः, तदास्वम् ।।
५. 'तत्काल ( उस समय )में होनेवाले फल' अर्थात् तात्कालिक फलका १ नाम है-सान्दृष्टिकम् ॥
६. 'उत्तर काल' (भविष्यमें आनेवाला समय) का १ नाम है-आयतिः। . ७. 'उत्तरकालमें होनेवाले फल' (भावी परिणाम )का १ नाम है
उदर्कः ॥
८. 'आकाश'के २० नाम है-व्योम (-मन् ), अन्तरिक्षम् (+अन्त-रीक्षम् ), गगनम् , घनाश्रयः, विहायः (-यस् ), अाकाशम् (२ पु न ),