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अभिधानचिन्तामणिः १ स सम्पर्यनूद्भयो वर्ष हायनोऽब्द समाः शरत् । २ भवेत्पत्रं त्वहोरात्रं मासेना३ब्देन दैवतम् ॥ ७३ ॥ ४ दैवे युगसहस्रे द्वे ब्राह्मं -
१. 'वर्ष, सालके ६ नाम हैं-संवत्सरः, परिवत्सरः, अनुवत्सरः, उद्वत्सरः, वर्षम्, हायनः, अन्दम् ( ३ पु न ), समाः ( स्त्री ब० व०), शरत् (-रद्, स्त्री)।
२. मनुष्यों के एक मासका ‘पैत्रम् अहोरात्रम्' (पितरोंकी १ दिन-रात ) होता है ।
विमर्श-मनुष्योंके कृष्णपक्ष तथा शुक्लपक्षमें पितरोंका क्रमश: दिन और रात होता है । वास्तविक दृष्टि से यह क्रम उस स्थितिमें है, जब आधी रातसे दिनका परिवर्तन .माना जाता है, सूर्योदयसे दिनारम्भ माननेपर मनुष्यों के कृष्णपक्षको अष्टमी तिथिके उत्तरार्द्धसे शुक्लपक्षकी अष्टमी तिथिकै पूर्वार्द्धतक पितरोंका दिन तथा मनुष्योंके शुक्ल पक्षकी अष्टमी तिथिके उत्तरार्द्धसे कृष्णपक्षकी अष्टमी तिथिके पूर्वार्द्धतक पितरोंकी रात होती है, इस प्रकार मनुष्योंकी अमावस्या तथा पूर्णिमा तिथियोंके अन्तमें पितरोंका क्रमशः मध्याह्न तथा श्राधीरात होती है ।
३. मनुष्योंके एक वर्षका 'दैवतम् अहोरात्रम्' ( देवताओंकी १ दिन-रात )
होता है।
विमर्श-मनुष्योंका उत्तरायण (सूर्यकी मकरसंक्रान्तिसे मिथुनसंक्रान्तितक ) देवोंका दिन और मनुष्योंका दक्षिणायन (सूर्यकी कर्कसंक्रान्ति से धनुसंक्रान्तितक ) देवोंकी रात होती है । वास्तविकमें यह क्रम भी उसी स्थितिमें है, जब आधीरातके बादसे दिनका प्रारम्भ माना जाता है, सूर्योदयसे दिनका प्रारम्भ माननेपर तो मनुष्यों के उत्तरायणके उत्तरार्द्धसे दक्षिणायनके पूर्वार्द्धतक (सूर्यकी मेषसंक्रान्तिके प्रारम्भसे कन्यासंक्रान्तिके अन्ततक) देवोंका दिन और मनुष्योंके दक्षिणायन के उत्तरार्द्धसे उत्तरायणके पूर्वार्द्धतक ( सूर्यकी तुलासंक्रान्तिके प्रारम्भसे मीनसंक्रान्तिके अन्ततक) देवोंकी रात होती है। इस प्रकार मनुष्यों के उत्तरायण तथा दक्षिणायन ( सूर्यकी मिथुन तथा धनुसंक्रान्ति )के अन्तिम दिनों में देवोंका क्रमशः मध्याह्न तथा आधीरात होती है।
४. देवोंके दो हजार युगका 'ब्राझम् अहोरात्रम्' (ब्रह्माका दिन-रात ) होता है।
विमर्श-मनुष्योंके ३६०वर्ष देवोंके ३६० दिन अर्थात् १ दिव्य वर्ष होते हैं। तथा १२००० दिव्य वर्ष (मनुष्योंके ४३२०००० तैंतालिस लाख