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'मणिप्रभा' व्याख्योपेतः
१ हेमन्तः प्रसलो रौद्रोऽथ शेषशिशिरौ समौ ।
३ वसन्त इष्यः सुरभिः पुष्पकालो बलाङ्गकः ॥ ७० ॥ ४ उष्ण उष्णागमो ग्रीष्मो निदाघस्तप ऊष्मकः । ५ वर्षास्तपात्ययः प्रावृट् मेघात्कालागमौ क्षरी ॥ ७१ ॥ ६ शरद् घनात्ययो७यनं शिशिराद्यैस्त्रिभिस्त्रिभिः । अयने द्वे गतिरुदग्दक्षिणार्कस्य वत्सरः ॥ ७२ ॥
देवकाण्ड: २ ]
४५.
१. 'हेमन्त ऋतु' के ३ नाम हैं — हेमन्तः, प्रसल, रौद्रः ( यह ऋतु अगहन तथा पौष मास में होता है ) |
शेषश्चात्र - हिमागमस्तु हेमन्ते ।
२. 'शिशिर ऋतु' के २ नाम हैं - शेषः, शिशिर : ( पु न ) | ( यह ऋतु माघ तथा फाल्गुन मासमें होता है ) ।।
३. 'वसन्त ऋतु' के ५ नाम हैं -- वसन्तः, इष्यः ( २ पु न ), सुरभिः ( पु ), पुष्पकालः, बलाङ्गकः । ( यह ऋतु चैत्र तथा वैशाख मासमें होता है ) ।
शेषश्चात्र – वसन्ते पिकबान्धवः ।
पुष्पसाधारणश्चापि ।
४. 'ग्रीष्म (गर्मी) ऋतु' के ६ नाम हैं -- उष्णः, उष्णागमः, ग्रीष्मः, • निदाघः, तपः, ऊष्मकः ( + ऊष्मः) । (यह ऋतु ज्येष्ठ तथा श्राषाढ़ मास में होता है।
शेषश्चात्र -- ग्रीष्मे तूष्मायंणो मतः । .: श्राखोर पद्मौ
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५. 'वर्षा ऋतु' के ६ नाम हैं--वर्षाः (नि० ब० व० स्त्री ), तपात्ययः, प्रावृट् (–वृष्, स्त्री ), मेघकाल:, मेघागम:, क्षरी (-रिन्) । ( यह ऋतु श्रावण तथा भाद्रपद मास में होता है ) ॥
६. 'शरद् ऋतु' के २ नाम हैं -- शरद् (स्त्री), घनात्ययः ॥
७. शिशिर आदि ३-३ ऋतुत्रों का 'अयन' होता है । ( 'अयनम्'नपुं - है ) ।
विमर्श - शिशिर, वसन्त तथा ग्रीष्म तीन ऋतुओं ( माघसे श्राषाढ़तक ६ मासों) का ‘उत्तरायण' और वर्षा, शरद् तथा हेमन्त तीन ऋतुओं (श्रावणसे पौषतक ६ मासों ) का 'दक्षिणायन' होता है ।
८. 'सूर्य की उत्तर तथा दक्षिण दिशाकी ओर गति से दो अयन होते हैं— 'उत्तरायणम्' 'दक्षिणायनम्' । इन दोनों श्रयनोंका ( ६ ऋतुओं का, अथवा १२ माका ) 'वत्सरः' अर्थात् १ वर्ष होता है |