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_ विलुप्त कोशग्रन्थों में भागुरिकृत केश का नाम सर्वप्रथम आता है। अमरकोश की टीका सर्वस्व' में भागुरिकृत प्राचीन कोश के उद्धरण उपलब्ध होते हैं। सायणाचार्य की धातुवृत्ति में भागुरि के कोश का पूरा श्लोक उद्धृत है। पुरुषोत्तमदेव की 'भाषावृत्ति, सृष्टिधर की भाषावृत्ति टीका तथा प्रभावृत्ति' से अवगत होता है कि भागुरि के उस कोशमन्थ. का नाम 'त्रिकाण्ड' था । इनका एक 'भागुरि व्याकरण' नामक व्याकरण ग्रन्थ भी था। ये पाणिनि के पूर्ववर्ती हैं।
भानुजिदीक्षित ने अपनो अमरकोश की टीका में आचार्य आपिशल का एक वचन उद्धृत किया है, जिसके अवलोकन से यह विश्वास होता है कि उन्होंने भी कोई कोशग्रन्थ अवश्य लिखा था। उणादि सूत्र के वृत्तिकार उज्ज्वलदत्त द्वारा उद्धत एक वचन से उक्त तथ्य की पुष्टि भी होती है । आपि. शल वैयाकरण भी थे तथा इनका स्थितिकाल पाणिनि से पूर्व है।
केशव ने 'नानार्थार्णव संक्षेप' में शाकटायन के कोश विषयक वचन उद्धृत किये हैं, जिनसे इनके कोशकार होने की संभावना है। व्याडिकृत किसी विलुप्त कोश के उद्धरण भी अभिधान चिन्तामणि आदि कोशग्रन्थों की विभिन्न टीकाओं में मिलते हैं । श्री कीथ ने अपने संस्कृत साहित्य के इतिहास में लिखा है कि कात्यायन एक नाममाला के कर्ता, वाचस्पति शब्दार्णव के रचयिता और विक्रमादित्य संसारावर्त के लेखक थे। ___उपलब्ध संस्कृत कोश ग्रन्थों में सबसे प्राचीन और ख्यातिप्राप्त अमरसिंह का अमरकोश है । यह अमरसिंह बौद्ध धर्मावलम्बी थे। कुछ विद्वान् इन्हें जैन भी मानते हैं। इनकी गणना विक्रमादित्य के नवरत्नों में की गयी है । अतः इनका समय चौथी शताब्दी है । मैक्समूलर ने इनका समय ईस्वी छठी शती से पहले ही स्वीकार किया है। इनका कथन है कि अमरकोश का चीनीभाषा में एक अनुवाद छठी शताब्दी के पहले ही हो चुका था। डॉ. हार्नले ने इसका रचनाकाल ६२५-९४८ ई. के बीच माना है। कहा जाता है कि ये महायान सम्प्रदाय से सुपरिचित थे; अतः इनका समय सातवीं शती के उपरान्त होना चाहिए।
१ सर्वानन्दविरचित टीका सर्वस्व भाग १ पृ० १९३ २ धातुवृत्ति भू धातु पृ० ३० ३ भाषावृत्ति ४।४।१४३ ४ गुरुपद हालदारः-व्याकरणदर्शनेर इतिहास पृ० ४९९ ५ अमरटीका शश६६ पृ०६८