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अभिधानचिन्तामणिः १चटु चाटु प्रियप्राय रप्रियसत्यं तु सूनृतम् । ३सत्यं सम्यक्समीचीनमृतं तथ्य यथातथम् ।। १७८ ॥ यथास्थितञ्च सद्भुते४ऽलीके तु वितथानृते । पूअथ क्लिष्टं संकुलश्च परस्परपराहतम् ।। १७६ ।। ६सान्त्वं सुमधुरं ग्राम्यमश्लीलं चम्लिष्टमस्फुटम् । हलुप्तवर्णपदं प्रस्त१०मवाच्यं स्यादनक्षरम् ॥ १८० ॥ ११अम्बूकृतं स्थूत्कारे १२निरस्तं त्वरयोदितम् ।. १३आम्रडितं द्विस्त्रिरुक्त१४मबद्धन्तु निरर्थकम् ।। १८१॥.. १५पृष्ठमांसादनं तद्यत् परोक्षे दोपकीतनम् । १. 'अधिकतर प्रिय ( खुशामदी ) बात' के २. नाम हैं-चटु, चाटु ।। २. प्रिय तथा सत्य वचन'का १ नाम है-सूनृतम् ॥ ....
३. 'सत्य वचन'के ८ नाम हैं-सत्यम् , सम्यक (-म्यञ्च ), समी-. चीनम्, ऋतम् , तथ्यम् , यथातथम् , यथास्थितम्, सद्भ तम् ॥ .
४. 'असत्य (झूठे) वचन के ३ नाम है-अलीकम् , वितथम् , अनृतम् (+असत्यम् , मिथ्या, मृषा, २ अव्य०)॥ .
५. 'परस्परमें विरुद्ध वचन'के २ नाम हैं-क्लिष्टम् , संकुलम् । ( यथा"अन्धो मणिमुपाविध्यत् तमनङ्गलिरासदत् । तमग्रीवः प्रत्यमुञ्चत् तमजिहोऽभ्यपूजयत् ॥” इस श्लोकमें अन्धे अादिके मणि छेदना आदि कार्य परस्परविरुद्ध होनेसे उक्त वचन 'क्लिष्ट' है ) ॥
६. 'अत्यन्त मधुर वचन'का १ नाम है-सान्त्वम् । ७. 'अश्लील (दिहाती ) वचन'के २ नाम हैं-ग्राम्यम् , अश्लीलम् ॥
विमर्श-इस 'ग्राम्य' वचन के ३ भेद हैं-व्रीडाजनक, - जुगुप्साजनक और अमङ्गलजनक । 'श्रालङ्कारिकोंने 'ग्राम्य' तथा 'अश्लील को परस्पर पर्यायवाचक न मानकर भिन्नार्थक माना है।
८. 'अस्पष्ट वचन'का १ नाम है-म्लिष्टम् ।।
६. 'जिसके वर्ण या पद लुप्त हों (जिसका पूरा-पूरा उच्चारण नहीं किया गया हो), उस वचन'का १ नाम है-ग्रस्तम् ।।
१०. 'अकथनीय वचन'के २ नाम हैं -अवाच्यम्, अनक्षरम् ।। ११. 'थूकसहित वचन'का १ नाम है--अम्बूकृतम् ।। १२. 'शीघ्र कहे गये वचन'का १ नाम है--निरस्तम् ॥ १३. 'दो-तीन बार कहे गये वचन'का १ नाम है-आम्र डितम् ।। १४. 'निरर्थक ( अर्थशून्य ) वचन'का १ नाम है-अबद्धम् ।। १५. 'परोक्ष में दोष कहने का १ नाम है-पृष्ठमांसादनम् ।।