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अभिधानचिन्तामणिः १बैल्वः सारस्वतो रौच्यः स्पैलवस्त्वौपरोधिकः॥ ४७६ ।। ३आश्वत्थस्तु जितनेमिटरोदुम्बर उलूखलः। ५जटा सटा ६वृषी पीठं ७कुण्डिका तु कमण्डलुः ॥ ४८० ॥ श्रोत्रियश्छान्दसो यष्टा त्वादेष्टा स्याद् मखे व्रती। याजको यजमानश्च १०सोमयाजी तु दीक्षितः ॥ ४८१ ॥ ११इज्याशीलो यायजूको १२यज्वा स्यादासुतीबलः।
१. 'ब्रह्मचारीके बेलके दण्ड'के ३ नाम हैं-बेल्वः, सारस्वतः, रौच्यः॥
२. ब्रह्मचारीके पीलु (वृक्ष-विशेष )के । दण्ड'के २ नाम हैं.-पैलवः, औपरोधिकः॥
३. 'ब्रह्मचारीके पीपलके दण्ड'के २ नाम हैं-आश्वत्थः, जितनेमिः ।। ४. 'ब्रह्मचारीके गूलरके दण्ड'के २ नाम हैं-औदुम्बरः, उलूखलः ।।
विमर्श-इस ग्रन्थकी 'स्वोपजवृत्ति में स्पष्ट उल्लेख नहीं होनेपर भी "ब्राह्मणजातीय ब्रह्मचारी का दण्ड पलाश या बांसका, क्षत्रियजातीय ब्रह्मचारीका दण्ड बेल या पीलुका और वैश्यजातीय ब्राह्मणका दण्ड पीपल या गूलरका होता है" ऐसा स्वरसतः प्रतीत होता है; क्योंकि वहींपर ( स्वोपज्ञ वृत्ति में ही) लिखा है कि"मनुस्तु–'ब्राह्मणो बैल्वपालाशौ क्षत्रियो वाटखादिरौ। ..
पैलवौदुम्बरौ वैश्यो दण्डानहन्ति धर्मतः ॥' इत्याह" अर्थात् 'मनुने तो-ब्राह्मण ब्रह्मचारी बेल या पलाशका, क्षत्रिय ब्रह्मचारी बड़ या खैर ( कथा ) का और वैश्य .ब्रह्मचारी पीलु या गूलरका दण्ड धर्मानुसार ग्रहण करें ऐसा कहा है ।।
५. 'जटा'के २ नाम हैं-जटा, सटा ॥ ६. 'तपस्वियोंके आसन'के २ नाम हैं---वृषी, पीठम् ।।
७. 'तपस्वियोंके कमण्डलु'के २ नाम हैं-कुण्डिका, कमण्डलुः (पु न)॥
८. 'वेदपाठी के २ नाम है-श्रोत्रियः, छान्दसः ।।
६. 'यजमान, यज्ञकर्ता'के ४ नाम हैं-यष्टा, आदेष्टा ( २-ष्ट ), याजकः, यजमानः॥
१०. 'यज्ञमें दीक्षित'के २ नाम हैं-सोमयाजी (-जिन् ), दीक्षितः ।। ...१२. 'सदा यज्ञ करनेवाले'के २ नाम है-इज्याशील:, यायजूकः ॥
१२. 'विधिपूर्वक यज्ञ किये हुए'के २ नाम हैं-यज्वा (-ज्वन् ) श्रासुतोबलः ।।