________________
'मणिप्रभा' व्याख्योपेतः
नरास्तृतीये, तिर्यञ्चस्तुर्य एकेन्द्रियादयः ॥ २० ॥ एकेन्द्रियाः पृथिव्यतेजोवायुमहीरुहः । कृमिपीलकलुताद्याः स्युर्द्वित्रिचतुरिन्द्रियाः || २१ ।। पञ्चेन्द्रियाश्चेभके किमत्स्याद्याः स्थलखाम्बुगाः । पञ्चेन्द्रिया एव देवा नरा नैरयिका अपि ॥ २२ ॥ नारकाः पञ्चमे साङ्गाः षष्ठे साधारणाः स्फुटम् । प्रस्तोष्यन्तेऽव्ययाश्चात्र १ त्वन्ताथादी न पूर्वगौ ॥ २३ ॥ अर्हन् जिनः पारगतस्त्रिकालवित्
32
२
तथा उनके वाचक शब्दों ) को, २ य काण्ड में - श्रङ्गों ( भेदोपभेदों ) के सहित देवोंको, ३ य काण्डमें— अङ्गों के सहित मनुष्योंको, ४र्थ काण्डमें-- श्रृङ्गोंके सहित तिर्यञ्चोंको, इनमें एक इन्द्रियवालों पृथ्वीकायिक ( शुद्ध पृथ्वी, शर्करा ( कक्कड़ ), बालू ( रेत ),), जलकायिक (हिम अर्थात् बर्फ आदि), तेज:कायिक ( अङ्गार आदि), वायुकायिक ( उत्कलिका आदि ) तथा वनस्पतिकायिक ( शेवाल आदि) जीवोंको; दो ( स्पर्शन ( चमड़ा) तथा रसना), इन्द्रियोंवाले कृमि आदि जीवोंको; तीन ( स्पर्शन, रसना तथा नाक ), इन्द्रियों 'वाले पिपीलिका ( चींटी ) आदि जीवोंको, चार ( स्पर्शन, रसना, नाक तथा नेत्र) इन्द्रियोंवाले लूता - ( मकड़ी ) आदि जीवों को और पाँच ( स्पर्शन, रसना, नाक, नेत्र तथा कान ) इन्द्रियोंवाले स्थलचर अर्थात् सूखी भूमिमें चलनेवाले हाथी, मनुष्य, गौ आदि; खेचर अर्थात् श्राकाशमें चलनेवाले मोर, कबूतर, गीध, चील आदि और जलचर अर्थात् पानीमें चलनेवाले मछली, मगर, घड़ियाल, सूँ श्रादि जीवोंको तथा उक्त पांच इन्द्रियोंवाले ही देवों, मनुष्यों तथा नारकीय ( नरकवासी ) जोवोंको; एवं ५म काण्डमें - अङ्गोंके सहित नारकीय ' जीवोंको और ६ष्ठ काण्ड में - साधारण तथा अव्यय शब्दों को कहूँगा ||
१. 'स्वन्त' ( जिसके अन्त में 'तु' शब्द है वह ) शब्द तथा 'अादि ' ( जिसके पूर्व में 'थ' शब्द है वह ) शब्द अपने से पहलेवाले शब्द के साथ सम्बद्ध नहीं होता है । ( क्रमशः उदा० - १ म 'स्वन्त' जैसे – ' स्यादनन्तजिदनन्तः सुविधस्तु पुष्पदन्त:' ( १२६ ) यहाँपर ' सुविध' शब्दके बादमें 'तु' शब्दका प्रयोग होने से 'सुविध' शब्द आगेवाले 'पुष्पदन्त' शब्दका ही पर्याय होता है, पूर्ववाले 'अनन्त' शब्दका नहीं । २ य 'अथादि' जैसे— 'मुक्तिर्मोक्षो - ऽषवर्गोऽथ मुमुक्षुः श्रमणो यति:' ( १७५ ) यहाँपर 'मुमुक्षु' शब्द के आदिमें 'थ' शब्दका प्रयोग होने से 'मुमुक्षु' शब्द आगेवाले 'श्रमण' शब्दका ही पर्याय होता है, पूर्ववाले 'पवर्ग' शब्दका नहीं ) |
२. 'जिनेन्द्र भगवान्' के २५ नाम हैं - अर्हन् ( - तू ), जिन:, पारगतः,