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सामान्यकाण्डः ६ मणिप्रभा'व्याख्योपेतः
३६३ -१व्यधनो वेधे रक्षये क्षिया । ३स्फरण स्फुरणे ४ज्यानिर्जीवथ वरो वृतौ ॥ १५६ ॥ ६समुच्चयः समाहारोऽपहारापचयौ समौ । ८प्रत्याहार उपादान-बुद्धिशक्तिस्तु निष्क्रमः ॥ १६० ॥ १०इत्यादयः क्रियाशब्दा लक्ष्या धातुषु लक्षणम् । ११अथाव्ययानि वक्ष्यन्ते १२स्वः स्वर्गे १३भूः रसातले ।। १६१ ॥ १४भुवो विहायसा व्योम्नि १५द्यावाभूम्योस्तु रोदसी। १६उपरिष्टादुपयू चे १७स्यादधस्तादधोऽप्यवाक् ।। १६२॥ १८वर्जने त्वन्तरेणर्ते हिरुग नाना पृथग विना।
१. 'बेधने, छेदने'के २ नाम हैं-व्यधः, वेधः । २. कम होने घटने'के २ नाम हैं-क्षयः, क्षिया । ३. 'फड़कने के २ नाम है-स्फरणम् , स्फुरणम् ॥ ४. 'पुराना होने के २ नाम है-ज्यानिः, जीणिः॥ ५. 'स्वीकार करने, वरण करने के २ नाम हैं-वरः, वृतिः ।।
६. 'एकत्र ( इकट्ठा ) करने, ( समेटने, बटोरने )के २ नाम हैसमुच्चयः, समाहारः॥ . .
७. 'कम करने, हटाने के २ नाम है-अपहारः अपचयः ॥ 5. 'लाने के २ नाभ हैं-प्रत्याहारः, उपादानम् ।। ६. 'अष्टविध बुद्धिशक्ति'का १ नाम है-निष्कमः ॥
१०. इत्यादि प्रकारसे सिद्ध क्रियावाचक शब्दोंको धातु-प्रकृति-प्रत्ययके विभागादिके द्वारा जानना चाहिए ।
११. अब साधारण शब्दोंका अर्थ कहने के बाद 'अव्यय' (तीनो लिङ्गों, सातों विभक्तियों तथा तीनों वचनोंमें समान रूपवाले) शब्दोंको कहते हैं । 'अव्ययः' यह शब्द पुल्लिङ्ग और नपुंसक लिङ्ग है ॥
१२. 'स्व' (स्वर ) का अर्थ 'स्वर्ग' है । १३. 'भू' (+भूस) का अर्थ 'रसातल, पाताल' है । १४. 'भुवः ( वस् ), विहायसा' इन २ शब्दोंका अर्थ 'श्राकाशमें' है । १५. 'रोदसी'का अर्थ 'आकाश तथा भूमिका मध्य भाग' है ॥
१६. 'उपरिष्टात् , उपरि' इन २ शन्दोंका अर्थ 'अपरमें है ।। . १७. 'अधस्तात्' अधः (- धस ) इन २ शब्दोंका अर्थ 'नीचे' है ।।
१८. 'अन्तरेण, श्रुते, हिरुक , नाना, पृथक , विना' इन ६ शन्दोंका अर्थ 'अभावमें, विना' है ।।