SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः १ वध्याद्भिवेषिजिद्घातिध्रगरिध्वंसिशासनाः ॥१०॥ अप्यन्तकारिदमनदर्पच्छिन्मथनादयः । २ विवक्षितो हि, सम्बन्ध एकतोऽपि पदात्ततः॥ ११ ॥ होते हैं । ( क्रमशः उदा०-'युसद्मानः (घुसदनाः, दिवौकसः', युवसतयः, दिवाश्रयाः',............ ), द्यशयाः, युवासिनः (-सिन् ), द्यसदः (-द् )' आदि शब्द देवोंके पर्यायवाचक हैं, क्योंकि देवोका आश्रय ( निवासस्थान ) दिव और दिव अर्थात् स्वर्ग है, ऐसी रूढि है।। विमर्श-यहाँ भी कवियोंकी रूढिसे प्रसिद्ध शब्दोंका ही ग्रहण होनेसे जिस प्रकार देवोंका पर्यायवाचक 'घुसद्मानः (-द्मन् )' शब्द है, उसी प्रकार मनुष्योंके श्राश्रय ( वासस्थान ) 'भूमि' शब्द के बादमें 'समन्' आदि शब्द रखनेसे बना हुअा 'भूमिसद्मा' आदि शब्द मनुष्यों के पर्याय नहीं होते ॥ १. "वध्य'वाचक शब्दके बादमें “भिद्, द्वेषी, जित् , घाती, ध्रुक , अरि, ध्वंसी, शासन, अन्तकारी, दमन, दर्पच्छिद् , मथन" आदि ( 'आदि शब्दसे-“दारी, निहन्ता, केतु, हा, सूदन, अन्तक, जयी,........." शब्दोंका संग्रह है ) शब्द रहें तो वे विधक' अर्थात् मारनेवालेके पर्याय हो जाते हैं । क्रमशः उदा०--पुरभित् (-भिद् ), पुरद्वेषी (- षिन् ), पुरजित्, पुरघाती (-तिन् ), पुरध्रक (-दुह ), पुरारिः, पुरध्वंसी (-सिन् ), पुरशासनः, पुरान्तकारी (-रिन् ), पुरदमनः, पुरंदपाच्छत् (-द् ), पुरमथनः, आदि ( आदि शब्दसे संगृहीतके क्रमशः उदा०-पुरहारी (-रिन् ), पुरनिहन्ता (-४), पुरकेतुः, पुरहा (-हन् ), पुरसूदनः, पुरान्तकः, पुरजयी (-यिन् ), ....."). 'पुर'के मारनेवाले 'शिवजी' के पर्यायवाचक हैं। .. विमर्श-वध्य' शब्दसे वधके योग्य का भी संग्रह है, अर्थात् जिसका वध नहीं हुआ हो, किन्तु वह वध्यके योग्य है या उसको पराजितकर दयादि के कारण छोड़ दिया गया है, उसके बादमें भी उक्त 'भिद् ,...", शब्दोंके रहनेपर वे शब्द वधक अर्थात् विजेताके पर्यायवाचक हो जाते हैं । यथा-"कालि. यभिद् , कालियदमनः, कालियारिः, कालियशासन:,.....” शब्द 'कालिय'. को पराजित करनेवाले विष्णुके पर्याय होते हैं। यहां भी 'कविरुढिके अनुसार ही प्रयोग होनेसे 'कालियदमन' शब्दके समान विष्णुके पर्यायमें कालियघाती (-तिन् ) शब्दका प्रयोग नहीं किया जाता है ।। २. सम्बन्ध विवक्षाके अधीन हुअा करता है, अत एव एक भी 'वृष' १-२ अत्र शब्दद्वयेऽदन्तो 'दिव' शब्दो बोध्यः, अन्येषु तु 'दिव' शब्दो दन्त्यौष्ठान्त इति । ..
SR No.002275
Book TitleAbhidhan Chintamani
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Hargovind Shastri
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1966
Total Pages566
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy