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अभिधानचिन्तामणिः शनैर्मन्देरऽवरे स्वर्वाग्रोषोक्तावु ४नतौ नमः ।। १८८ ।। इत्याचार्यहेमचन्द्रविरचितायाम् 'अभिधानचिन्तामणि' नाममालायां
षष्ठः सामान्यकाण्डः समाप्तः॥६॥ ॥ सम्पूर्णोऽयं प्रन्थः॥
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१. शनैः (-नेस); का अर्थ 'धीरे मन्द' है ॥ २. 'श्रर्वाक (-र्वाञ्च ) का अर्थ 'कम, पहले' है ॥ ३. 'उम्'का प्रयोग 'क्रोधपूर्वक कहने में होता है । . ४. 'नमः (-मस् ) का अर्थ 'नमस्कार, प्रणाम' है ।।.
इस प्रकार साहित्य-व्याकरणाचार्यादिपदविभूषित मिश्रोपाह भीहरगोविन्दशास्त्रिविरचित मणिप्रभा'व्याख्या, में .
षष्ठ 'सामान्यकाण्ड' समास हुश्रा ।
समाप्तोऽयं ग्रन्यः ।