________________
अभिधानचिन्तामणिः
-श्तासां विंशत्या भार आचितः । शाकटः शाकटीनश्च शलाटरस्ते दशाचितः ।। ५४६ ॥ ३चतुर्भिः कुडवैः प्रस्थः ४प्रस्थैश्चतुर्भिराढकः। ५चतुर्भिराढकोणः ६खारी षोडशभिश्च तैः ॥ ५५० ॥
१. 'बीस तुला ( पसेरी) अर्थात् ढाई मनके ५ नाम हैं-भारः, आचितः, शाकट:, शाकटीनः, शलाटः॥
२. 'दश भार' ( पचीस मन )का १ 'आचितः' (+न ) होता है ।
विमर्श--यहां पर भारः,............ "शलाट:' ५ शब्दोंको एकार्थक नहीं मानकर 'शाकटः, शाकटीनः, शलाटः इन तीन शब्दोंका सम्बन्ध 'ते दशाचित:'के साथ करके अर्थ करना चाहिये-“बीस तुला. (२००० पल-ढाई मन )के २ नाम हैं-भारः, आचितः' । तथा 'दश भार' ( २५ मन )के ४ नाम हैं-'शाकटः, शाकटीनः शलाटः, प्राचितः ।" ऐसा अर्थ नहीं करने से 'स्वोपज्ञवृत्ति' में लिखित "शकटेन वोदुशक्यः शाकटः" (गाड़ीसे दो सकने योग्य ) यह विग्रह सङ्गत नहीं होता, क्योंकि 'आचितः' के विग्रहमें उसके पूर्वलिखित 'पुंसा हि द्वे पलसहस्र वोदु,शक्यते' (मनुष्य २००० पल अर्थात् ढाई मन ढो सकता है ) वचन गाड़ी तथा मनुष्य दोनों का बोझ ढाई मन मानना लोकविरुद्ध प्रतीत होता है । इसके विपरीत मत्प्रतिपादित अर्थके अनुसार मनुष्यको ढाई मन और गाड़ीको पच्चीस मन बोझ ढोना लोक व्यवहारनुकूल होता है, अतएव-२०. तुला ( २००० पल = ढाई मन )के भारः, आचितः' दो नाम और १० अाचित ( २५ मन )के "शाकटः, शाक टीनः, शलाटः, आचितः' चार नाम हैं" ऐसा अर्थ करना चाहिए। ऐसा अर्थ करने पर ही “भारः स्यादिशतिस्तुलाः । आचितो दश भाराः स्युः शाकटो भार
आचितः । (अमरकोष २ । ६६ । ८७ )" अर्थात् “२० तुला (ढाई मन )का 'भार' और १० भार ( २५ मन )का १ 'श्राचित' होता है और यह आचित गाड़ीका बोझ होता है। इस अमरकोषोक्तिसे भी विरोध नहीं होता है। मानके विषय में विशेष जिज्ञासुओंको अमरकोष की मत्कृत 'मणिप्रभा' व्याख्या की 'अमरकौमुदी टिप्पणी देखनी चाहिए ।
३. (अब क्रमप्राप्त द्वितीय 'द्रवय' नामक मानको कहते हैं-)'चार कुडब' (आठ पसर) का १ नाम है--प्रस्थः ( पुन )॥
४. 'चार प्रस्थ'का १ नाम है-आढकः ( त्रि)॥ ५. 'चार आढक'का १ नाम है--द्रोणः (पु न)॥ ६. 'सोलह द्रोण'का १ नाम है-खारी ॥ .