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मकाण्ड : ३ ]
'मणिप्रभा' व्याख्योपेतः
१ श्रधमर्णी
ग्राहकः स्यादुत्तमर्णस्तु दायक: ।
३ प्रतिभूर्लग्नकः ४साक्षी स्थेय. ५श्राधिस्तु बन्धकः || ५४६ ॥ पौतवं मान ७द्रवर्यं कुडवादिभिः ।
६ तुलाद्यैः
पायं हस्तादिभिस्तत्र स्याद्गुञ्जाः पच माषकः ।। ५४७ ॥ १० ते तु षोडश कर्षोऽक्षः ११पलं कर्षचतुष्टयम् । १२ विस्तः सुवर्णो हेम्नोऽक्षे १३ कुरुविस्तस्तु वत्पले ॥ ५४= ॥ १४ तुला पलशत
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१. ‘कर्जदार, ऋण लेनेवाले' के २ नाम हैं - श्रधमर्णः, ग्राहकः ।। २. 'कर्जदेनेवाले, महाजन के ३ नाम है –उत्तमर्णः, दायकः ।। ३. उक्त दोनों के बीच में जमानत करनेवाले' के २ नाम हैं - प्रतिभूः,
लग्नकः ॥
४. 'गवाह, साक्षी' के २ नाम हैं - साक्षी (-क्षिन् ), स्थेयः ।। शेषश्चात्र- - श्रथ साक्षिणि स्यान्मध्यस्थः प्राश्निकोऽपि सः । कूटसाक्षी मृषासाक्ष्ये सूची स्याद् दुष्टसाक्षिणि ॥
५. 'बन्धक' (ऋण चुकानेतक प्रामाणिकता के लिए महाजनके यहाँ रखी हुई कोई वस्तु आदि ) के २ नाम हैं-आधिः, बन्धकः ॥
६. ( अब मान-विशेषका वर्णन करते हैं — ) 'तराजू, काँटा आदि से तौलने का १ नाम है - पौतवम् (+ यौतवम् ) ।
७. 'कुडव · ( पसर, अञ्जलि ) आदिसे नापकर प्रमाण करने' का १ नाम हैं - द्रुवयम् ॥
८. 'हाथ, फुट, गज, बांस आदि से प्रमाण करने' का १ नाम है-पाय्यम् ॥
६. ' उन तीनोंमें (पौतव) द्रुवय और पाय्य' संशक मानोंमें क्रमप्राप्त प्रथम. 'पौतव' मानका वर्णन करते हैं -) 'पौतव' मानमें पांच गुञ्जा ( रत्ती ) का १ 'माषकः' ( मासा= १ आना भर होता है ।
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१०. 'सोलह माषक' ( मासे ) का १ 'कर्ष:, अक्ष:' ( १ रुपया भर ) होता है । ये २ नाम हैं ।
११. 'चार कर्ष' (' रुपयेभर ) का १ 'पलम्' ( एक छटाक पल) होता है || १२. 'सोने के अक्ष ( एक भर सोने अर्थात् एक असर्फी ) के २ नाम हैंविस्तः, अक्षः ॥
१३. 'एक पल ( चार भर ) सोने' का १ नाम है - कुरुविस्तः ॥
१४. 'सौ पल' ( चार सौ रुपये भर अर्थात् पांचसेर ) का एक 'तुला " होती है ॥