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देवकाण्ड: २] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः
रत्यादेः स्थायिनो लोके तानि चेत्काव्यनाट्ययोः । विभावा अनभावाश्च व्यभिचारिण एव च ॥ २४० ॥ व्यक्तः स तैर्विभावाद्यैः स्थायी भावो भवेद्रसः। १पात्राणि नाट्येऽधिकृतास्तत्तद्वेषस्तु भूमिका ॥ २४१ ॥ ३शैलूषो भरतः सवेकेशी भरतपुत्रकः । धर्मीपुत्रो रङ्गजायाऽऽजीवो रङ्गावतारकः ॥ २४२ ॥ नटः कृशाश्वी शैलाली ४चारणस्तु कुशीलवः । ५भ्रभ्र भ्रूभृपरः कुंसो नटः स्त्रीवेषधारकः ॥ २४३ ।। वेश्याऽऽचार्यः पीठमर्दः ७सूत्रधारस्तु सूचकः ।
चित्तवृत्तिविशेषको सामाजिक ( दर्शक ) स्वयं अनुभव करता हुआ जिनके द्वारा अनुभावित होता है, उन्हें काव्य तथा नाट्यमें 'अनुभाव' कहते हैं । और उन 'रति' आदि ६ स्थायी भावोंके. सहचारी पूर्वोक्त (२।२२२-२३८) 'धृति' श्रादि ३३ 'व्यभिचारी भाव जिन विभावादि भावोंसे अभिव्यक्त ( सामाजिकों ( दर्शकों )के वासनारूपसे स्थित ) होते हैं, वह रति' आदि स्थायी भाव कवियों एवं सहृदयोंसे आस्वादित होनेके कारण शृङ्गारादि 'रस' कहलाता है।
विमर्शः-रति श्रादि ६ स्थायी भावोंके 'कारण, कार्य, तथा सहचारी' भाव काव्य तथा नाट्यमें क्रमशः 'विभाव, अनुभाव तथा व्यभिचारी' कहलाते हैं और उन (विभाव, अनुभाव तथा व्यभिचारी) भावोंसे अभिव्यक्त-दर्शकोंके वासनारूपसे स्थित-उस रति आदि स्थायी भावका ही कवि सहृदय जन आस्वादनकर श्रानन्दानुभव करते हैं, अत एव वे ( रत्यादि स्थायी भाव) ही क्रमशः शृङ्गारादि रस कहलाते हैं । - १. 'नाट्यमें अधिकृत व्यक्तियों ( ऐक्टरों, अभिनय करनेवालों )'का १ नाम है-पात्रम् ॥ ..
२. 'उन पात्रोंके वेष-भूषा'का १ नाम है-भूमिका ॥
३. 'नट'के ११ नाम हैं-शैलूषः, भरतः, सर्वकेशी (-शिन् ), भरतपुत्रकः, धर्मीपुत्रः, रंगजीवः, जायाजीवः, रङ्गावतारकः, नटः, कृशाश्वी (-श्विन् ), शैलाली (-लिन् ),॥
४. 'चारण ( देशान्तरमें भ्रमण करनेवाले नट ) के २ नाम हैचारणः, कुशीलवः ॥
५. 'स्त्रीका वेष धारण करनेवाले नट' के ४ नाम है-कुंसः, झुकुंसः, भ्रकुंस:, भृकुंसः॥
६. 'वेश्याओंके शिक्षक'के २ नाम हैं- वेश्याचार्यः, पीठमदः ।। ७. 'सूत्रधार के २ नाम हैं-सूत्रधारः, सूचक: (+स्थापकः )।