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अभिधानचिन्तामणिः
-मूलन्तु मोरटम् ।। २६० ॥ .. २काशस्त्विषीका घासस्तु यवसं ४तृणमर्जुनम् । ५विषः क्ष्वेडो रसस्तीक्ष्णं गरलो
शून्येश्वर, कोषकार, शतघोर, तापस, नेपाल, दीर्घपत्र, काष्ठेतुः, नीलघोर और खनटी ॥'
१. 'गन्नेकी जड़'का १ नाम है--मोरटम् ।। २. 'काश नामक घास'के २ नाम हैं-काशः ( पु न ), इषीका ।।
३. 'घास (गौ आदि पशुओंका खाद्य-घास, भूसा आदि) के २ नाम हैंवासः, यवसम् (न ।+पु)॥
४. 'तृण'के २ नाम हैं-तृणम् (पु न ), अर्जुनम् ॥ ..
५. विष, जहर' के ५ नाम है-विषः (पु न ), वेडः, रसः (पु न ), तीक्ष्णम्, गरलः (पु न )।
विमर्श-विषके मुख्य दो भेद होते हैं १ स्थावर तथा २ जङ्गम । प्रथम 'भ्यावर' विषके १० भेद तथा उन १० भेदोंके ५५ उपभेद होते हैं और द्वितीय 'जङ्गम' विषके १६ भेद होते हैं। कौन-सा विष किस-किस स्थान या जीवादिमें होता है, इसे जिज्ञासुओंको 'अमरकोष (१।८।१०-११) के मत्कृत 'मणिप्रभा' नामक राष्ट्रभाषानुवाद तथा 'अमरकौमुदी नामिका' संस्कृत टिप्पणीमें देखना चाहिए ॥ .
१ तद्यथा-"पुण्ड्रेक्षौ पुण्ड्रकः सेव्यः पौण्ड्रकोऽतिरसो मधुः ।
श्वेतकाण्डो भीरुकस्तु हरितो मधुरो 'महान् ।। शून्येश्वरस्तु कान्तारः कोषकारस्तु वंशकः । शतघोरस्त्वीषक्षार: पीतच्छायोऽथ तापसः ।। सितनीलोऽथ नेपालो वंशप्रायो महाबलः । अन्वर्थस्तु दीर्घपत्रो दीर्घपी कषायवान् ॥ काष्ठेतुस्तु ह्रस्वकाण्डो घनग्रन्धिर्वनोद्भवः । नीलघोरस्तु सुरसो नीलपीतलराजिमान् ॥ अनूपसंभवः प्रायः खनटी विक्षुबालिका । करङ्कशालिः शावेतुः सूचिपत्रो गुडेक्षवः ॥” इति ।