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सामान्यकाण्ड: ६] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः
पाण्यादि तु क्रियेन्द्रियम् । २स्पर्शादयस्त्विन्द्रियार्या विषया गोचरा अपि ॥ २० ॥ ३शीते तुषारः शिशिरः सुशीमः शीतलो जडः। हिमो४ऽथोष्णे तिग्मस्तीवस्तीक्ष्णश्चण्डः खरः पटुः ॥ २१ ॥ ५कोष्णः कवोष्णः कदुष्णो मन्दोष्णश्चेषदुष्णवत् । ६निष्ठुरः कक्खटः करः परुषः कर्कशः खरः ॥ २२ ॥ दृढः कठोरः कठिनो जरठः ७कोमलः पुनः। मृदुनो मृदुसोमालसुकुमारा अकर्कशः ॥ २३ ॥
१. 'हाय श्रादि ('आदि' शब्दसे वाक्, चरण, पायु (गुदा ) और उपस्थ (शिश्न, लिज ) का संग्रह है, अतः हाथ पैर आदि ) पांच इन्द्रियोंका १ नाम है-क्रियेन्द्रियम् (+कर्मेन्द्रियम् )॥
२. 'स्पर्श आदि ('श्रादि' शब्दसे 'स्वाद लेना, सूधना, देखना और सुनना' इन चारों का संग्रह है ) उन बुद्धीन्द्रियोंके विषय हैं, और उनके ३ नाम हैं-इन्द्रियार्थाः, विषयाः, गोचराः॥
विमर्श-'अमरकोष' कारने 'मन'को भी इन्द्रिय मानकर ६ 'शानेन्द्रिय है, ऐसा कहा है (१।५।८)। बुद्धीन्द्रियों ( ज्ञानेन्द्रियों) में-चमड़ेका हना, जीभका स्वाद लेना, नाकका सूंघना, नेत्रका देखना और कानका सुनना :-ये उन-उन इन्द्रियोंके अपने-अपने विषय हैं, तथा क्रियेन्द्रियों ( कर्मेन्द्रियों )में-हाथका प्रण करना, वाक्का बोलना, चरणका चलना, पायु (गुदा)का मलत्याग करना, और उपस्थ ( पुरुषके शिश्न और स्त्रियों के योनि)का मूत्रत्याग करना-ये उन-उन इन्द्रियोंके अपने-अपने 'विषय' हैं । 'अमरकोष' कारके. मतसे 'मन'को भी बुद्धीन्द्रिय माननेपर उस 'मन'का. 'जानना ( जान करना)' विषय है।
३. 'ठण्डे, शीतल' के ७ नाम हैं-शीतः, तुषारः, शिशिरः, सुशीमः. (+ सुषीमः ); शीतलः, जडः, हिमः ॥ .
४. 'गर्म, उष्ण के ७ नाम हैं-उष्णः, तिग्मः, तीव्रः, तीदणः, चण्डः,. खरः, पटुः ॥
५. थोड़े गर्म के ५ नाम हैं--कोष्णः, कवोष्णः, कदुष्णः, मन्दोष्णः, ईषदुष्णः (+ओष्ण:)॥ ___६. 'निष्ठुर, कर'के १० नाम है-निष्ठुरः, कक्खटः, (खक्खटः ),. करः, परुषः, कर्कशः, खरः, दृढः, कठोरः, कठिनः, जरठः (+जरढः)।
७. 'कोमल के ६ नाम हैं-कोमल:, मृदुलः, मृदुः, सोमालः, सुकुमारः, अकर्कशः॥