SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ देशिक उपलब्धि हैं, तो भी उनका निवास सबसे अधिक गुजरात में हुआ। इसलिए उनके व्यक्तित्व का भी सर्वाधिक लाभ गुजरात को ही प्राप्त हुआ है। उन्होंने अपने ओजस्वी और सर्वाङ्गपूर्ण व्यक्तित्व से गुजरात को सँवारासजाया है और युग-युग तक जीवित रहने की जीवन्त शक्ति भरी है। सारे सोलकी वंश को अपनी लेखनी का अमृत पिला-पिलाकर अमर बताया है। गुर्जर इतिहास में इन्हें अद्वितीय स्थान प्राप्त है।" आचार्य का जन्म एवं बाल्यकाल ___ आचार्य हेमचन्द्र का जन्म विक्रम संवत् ११४५ कार्तिकी पूर्णिमा को गुजरात के अन्तर्गत धन्धुका नामक गाँव में हुआ था। यह गाँव वर्तमान में भाधर नदी के दाहिने तट पर अहमदाबाद से उत्तर-पश्चिम में ६२ मील की दूरी पर स्थित है। इनके पिता शैवधर्मानुयायी मोढ़कुल के वणिक थे। इनका नाम चाचदेव या चाचिगदेव था। चाचिगदेव की पत्नी का नाम पाहिनी (पाहिणी ) था। एक रात को पाहिनी ने सुन्दर स्पप्न देखा। उस समय वहाँ चन्द्रगच्छ के आचार्य देवचन्द्र सूरि पधारे हुए थे। पाहिनी देवी ने अपने स्वप्न का फल उनसे पूछा। आचार्य देवचन्द्र सूरि ने उत्तर दिया-'तुम्हें एक अलौकिक प्रतिभाशाली पुत्ररत्न की प्राप्ति होगी। यह पुत्र ज्ञान, दर्शन और चारित्र से युक्त होगा तथा साहित्य एवं समाज के कल्याण में संलग्न रहेगा।' स्वप्न के इस फल को सुनकर माता बहुत प्रसन्न हुई। ___ समय पाकर पुत्र का जन्म हुआ। इनकी कुलदेवी चामुण्डा और कुलयक्ष 'गोनस' था, अतः माता-पिता ने देवता के प्रीत्यर्थ उक्त दोनों देवताओं के आद्य अक्षर लेकर बालक का नाम चाङ्गदेव रखा। लाड़-प्यार से चाङ्गदेव का पालन-पोषण होने लगा। शिशु नाङ्गदेव बहुत होनहार था। पालने में ही उसकी भवितव्यता के शुभ लक्षण प्रकट होने लगे थे। ... एक बार आचार्य देवचन्द्र अणहिलपत्तन से प्रस्थान कर भव्य जनों के प्रबोध-हेतु धन्धुका गाँव में पधारे। उनकी पीयूषमयी वाणी का पान करने के लिए श्रोताओं और दर्शनार्थियों की अपार भीड़ एकत्र थी। पाहिनी भी चांग. देव को लेकर गुरुवंदना के लिए गयी। सहज रूप और शुभ लक्षणों से युक्त चांगदेव को देखकर आचार्य देवचन्द्र उस पर मुग्ध हो गये और पाहिनी से उन्होंने कहा-"बहिन ! इस चिन्तामणि को तुम मुझे अर्पित करो। इसके द्वारा समाज और साहित्य का बड़ा कल्याण होगा। यह यशस्वी आचार्य पद १ आचार्य भिक्षुस्मृति ग्रन्थ, द्वितीय खण्ड पृ० ७३
SR No.002275
Book TitleAbhidhan Chintamani
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Hargovind Shastri
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1966
Total Pages566
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy