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देवफाण्ड: २] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः श्कपर्दोऽस्य जटाजूटः २खट्वाङ्गस्तु सुखंसुणः ॥ ११४ ।। ३पिनाकं स्यादाजगवमजकावञ्च तद्धनुः । ब्राह्मयाद्या मातरः सप्त५प्रमथाः पार्षदा गणाः ॥ ११५ ॥ ६लघिमा वशितेशित्वं प्राकाम्यं महिमाऽणिमा । यत्रकामावसायित्वं प्राप्तिरैश्वर्यमष्टधा ॥११६ ।।
जोटी जोटीङ्गोऽर्धकूट: समिरो धूम्रयोगिनौ। उलन्दो जयतः कालो जटाधरदशाव्ययौ । सन्ध्यानाटी रेरिहाणः शङ्क श्च कपिलाञ्जनः । जगद्रोणिरर्धकालो दिशां प्रियतमोऽतलः ।।
जगत्स्रष्टा कटाटङ्कः कटप्रहीरहृत्कराः । १. 'शिवजीके जटासमूह'के २ नाम हैं-कपर्दः, जटाजूटः ॥
२. 'शिवजीके खट्वाङ्ग'के २ नाम हैं-खटवाङ्गः (पु ।+न), सुखंसुणः ।। ___३. 'शिवजीके धनुष'के ३ नाम है-पिनाकम् (पु न ), आजगवम्, अजकावम् (+अजगवम् , अजगावम् )॥
४. शिवजीके परिफर 'ब्राह्मी' आदि सात माताएं हैं । _ विमर्श-उन सात माताश्रोंके ये नाम हैं-ब्रह्माणी, सिद्धी, माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, चामुण्डा.।
५. 'शिवजीके गणश्के ३ नाम हैं-प्रमथाः, पार्षदाः (+पारिषदाः), गणाः ॥
६. 'पाठं ऐश्वयों (सिद्धियों )का क्रमशः १-१ नाम है-लघिमा (-मन् ), वशिता, ईशित्वम्, प्राकाम्यम्, महिमा, अणिमा (२ मन् ), 'यत्रकामावसायित्वम्, प्राप्तिः ।।
विमर्श-इन आठ ऐश्वयोंके ये कार्य हैं- 'लघिमा' में भारी भी रुईके समान हलका होकर आकाशमें उड़ता है । 'वशिता में पृथ्वी आदि पंचभूत (पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश ), भौतिक पदार्थ गौ, घट आदि उसके वशीभूत हो जाते हैं और वह ( वशिता सिद्धिको पाया हुआ व्यक्ति ) उनका वश्य नहीं होता, अतः उनके कारण पृथ्वी आदिके परमाणु के वशमें होनेसे उनके कार्य भी वशमें हो जाते हैं तब उन्हें जिस रूपसे वह रखता है, उसी रूप में वे ( भौतिक कार्य ) रहते हैं । 'ईशित्व में भूत एवं भौतिक पदार्थोकी मूल प्रकृतिके वशमें हो जानेसे उनकी उत्पत्ति, नाश तथा स्थितिका स्वामी होता है । 'प्राकाम्य में इच्छाका विघात नहीं होता, अतः उक्त सिद्धि को पाया हुआ