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________________ अथ सामान्यकाण्डः ॥६॥ १स्याल्लोको विष्टपं विश्व भुवनं जगती जगत् । २जीवाजीवाधारक्षेत्र लोकोऽलोकस्ततोऽन्यथा ॥ १ ॥ ३क्षेत्रज्ञ आत्मा पुरुषश्चेतनः ४स पुनर्भवी। जीवः स्यादसुमान सत्त्वं देहभृज्जन्युजन्तवः ।। २ ।। ५उत्पत्तिर्जन्मजनुषी . जननं जनिरुद्भवः। ६जीवेऽसुजीवितप्राणा जीवातुर्जीवनौषधम् ॥ ३ ॥ श्वासस्तु श्वसितं हसोऽन्तर्मुख उच्छ्वास आहरः । आनो १. ( मुक्त देवाधिदेव तथा चार गतियोवाले देव, मयं, तिर्यञ्च और नारक असाधारण अङ्गोंके साथ पांच काण्डोंमें कह चुके हैं, अब तत्साधारणको कहनेवाला यह षष्ठः काण्ड कह रहे हैं-) 'लोक' के ६ नाम हैं-लोकः, विष्टपम् (पुन ), विश्वम् , भुवनम् (पु न), जगती, नगत् (न)। २. 'बीवो' (एकेन्द्रिय श्रादि प्राणियों) तथा 'श्रजीवों' ( उन जीवोंसे भिन्न धर्मास्तिकाय आदि प्राणियों के आधारभूत क्षेत्र का 'लोक' १ नाम है और उस लोकसे भिन्न श्राकाशादि रूप का 'अलोकः' १ नाम है ।। ३. 'आत्मा'के ४ नाम हैं-क्षेत्रशः, आस्मा (- त्मन् पु), पुरुषः, चेतनः (+जीव:)॥ ४. 'जीवात्मा के ७ नाम है-भवी (- विन् ), जीवः, असुमान् (- मत् । प्राणी, - णिन् ), सत्वम् (पुं न ), देहभृत् (+देहभान , - ज; शरीरी, - रिन;""..."), जन्युः , जन्तुः (पुन । शेष पु)॥ ५. 'जन्म, उत्पत्ति के ६ नाम हैं-उत्पत्तिः, जन्म (- मन ।+जन्मम् ), जनुः ( - नुम् । २ न), जननम् , जनिः (स्त्री), उद्भवः ।। ६. 'प्राण'के ४ नाम है-जीवः (त्रि), असवः (- सु, पु ब. व.), जीवितम् (+जीवातु:), प्राणाः (पु ब० ० ) ॥ ७. 'जीवन-रक्षाके उपाय के २ नाम है-जीवातुः (पु न ), जीवनौषधम् ।। ८. 'श्वास, सांस' के २ नाम है-श्वासः, श्वसितम् ।। ६. 'अन्तर्मुख (मध्य वृत्तिवाले ) उस श्वास' के ३ नाम हैं-उच्छवासः, आहरः, आनः il
SR No.002275
Book TitleAbhidhan Chintamani
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Hargovind Shastri
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1966
Total Pages566
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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