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________________ ३२८ अभिधानचिन्तामणिः श्थ पातालं वडवामुखम् ।। ५ ।। बलिवेश्माधोभुवनं नागलोको रसातलम् । रन्ध्र बिलं निर्व्यथनं कुहरं शुषिरं शुषिः ॥ ६॥ छिद्रं रोपं विवरं च निम्न रोकं वपान्तरम्। ३गर्तश्वभ्रावटागाधदरास्तु विवरे भुवः ॥ ७॥ इत्याचार्यहेमचन्द्रविरचितायाम् “अभिधानचिन्तामणिनाममालायां प..मो नारककाण्डः समाप्तः ।। ५॥ .. ... सीमन्तक आदि ('आदि' से 'रौद्र, हाहारव, घातन,......) नरकावास (रत्नप्रभा पृथिवोके प्रथम प्रतरका मध्यवर्ती नरककेन्द्र) होते हैं। १. पाताल'के ६ नाम है-पातालम्, वडवामुखम्, बलिवेश्म (-श्मन् ), अधाभुवनम् नागलोकः, रसातलम् (+रसा, तलम् )। . २. 'बिल, छिद्र'के १३ नाम है-रन्ध्रम् , बिलम् , नियंथनम् , कुहरम् , शुषिरम् , शुषिः (स्त्री । + पु.। सुषिरम् ), छिद्रम् , रोपम् , विवरम् , निम्नम्, रोकम, वपा, अन्तरम् ॥ ३. 'गढे'के ५ नाम है-गतः, श्वभ्रम् , अवटः, अगाध:, दरः (त्रि)॥ इस प्रकार साहित्यव्याकरणाचर्यादिदिपदविभूषितमिश्रोपाहीहरगोविन्द शास्त्रिविरचित 'मणिप्रभा' व्याख्यामें पञ्चम .. 'नारककाण्ड' समाप्त हुआ ॥ ५ ॥
SR No.002275
Book TitleAbhidhan Chintamani
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Hargovind Shastri
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1966
Total Pages566
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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