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तिर्यक्काण्डः ४ ]
'मणिप्रभा' व्याख्योपेतः
- १ कणिशं सस्यशीर्षकम् ॥ २४७ ॥ २स्तम्बस्तु गुच्छो धान्यादे३र्नाल काण्डो४ फलस्तु सः । पलः पालो प्रधान्यत्वक्तुषो ६बुसे कडङ्गरः ।। २४८ ॥ धान्यमावसितं रिद्धं तत्पूतं निर्बुसीकृतम् ।
हमूलपत्रकरीरामफलकाण्डाविरूढकाः
॥ २४६ ॥
त्वक्पुष्पं कवकं शाकं दशधा शिग्रकन तत् । १० तण्डुलीयस्तण्डुलेरो मेघनादोऽल्पमारिषः ॥ २५० ॥
२८७
१. ' धान, गेहूँ, जौ आदिको बाल' के २ नाम हैं - कणिशम् ( पु न । + कनिशम् ), सस्यशीर्षकम् ( + सस्यमञ्जरी ) ॥
२. 'घान आदि स्तम्ब' के २ नाम हैं— स्तम्बः, गुच्छः ॥
३. 'धान आदिके
डण्ठल ( डांठ) के २ नाम हैं - नालम् (त्रि ),
कराड (एनए
४. 'पुआल ( धानके अन्नरहित डण्ठल ) के २ नाम है - पलः, पलालः ( २ पु न ) ॥
५. 'धान के छिलका ( भूसी) के २ नाम हैं - धान्यस्वक् (चू, - स्त्री ), तुषः ॥
६. 'धान आदिके भूसे ( जिसे पशु खाते हैं, उस पवटा, भूसा ) के २ नाम हैं - बुस : ( पु न ), कडङ्गरः ॥
७.
'पके या सुरक्षार्थं ढके हुए धान्य' के ३ नाम हैं-धान्यम्, भावसितम्, रिद्धम् ||
८. 'ओसाए हुए (भूसा से अलग किये हुए ) धान्य' का १ नाम है
पूतम् ॥
६. 'जड़ (मूली बिस श्रादिके ), पत्ता ( नीम आदिके ), कोपल · (बाँस श्रादिके), अग्र ( करील वृक्षादिके), फल ( कद्द ू, कोहड़ा आदिके ), डाल ( एरण्ड, बाँस आदिके ), विरूढक ( खेत से उखाड़े गये फल या जड़ आदिके स्वेदसे पुनः पैदा हुए अङ्कुर । या— - अविरूढक - ताड़ के बीजकी गिरी ), छिलका ( केला आदिके ), फूल ( अगस्त्य, करीर वृक्ष आदिके ), और कवक ( वर्षा ऋतु में उत्पन्न होनेवाले छत्राकार भूकन्द-विशेष कुकुरमुत्ता ), थे १० प्रकारके 'शाक' होते हैं, इन (शाकों) के २ नाम हैं- शाकम्, शिशुकम् (+शिग्रु । २ पु न ) ॥
१०. ( अब ‘शाक-विशेष' के पर्याय कहते हैं -) 'चौराई शाक' के ४ नाम है - तण्डुलीयः, तण्डुलेरः, मेघनादः, अल्पमारिषः ॥