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________________ 'मणिप्रमा व्याख्योपेतः १ गणां नवास्यर्षिसङ्घा २ एकादश गणाधिपाः । इन्द्रभूतिरग्निभूतिर्वायुभूतिश्च गोतमाः ॥३१॥ , व्यक्तः सुधर्मा मण्डितमौर्यपुत्रावकम्पितः । अचलभ्राता मेतार्यः प्रभासश्च पृथक्कुलाः ।। ३२॥ ३ केवली चरमो जम्बूस्वाम्य४थ प्रभवप्रभुः।। शय्यम्भवो यशोभद्रः सम्भूतविजयस्ततः ॥ ३३ ॥ भद्रबाहुः ५स्थूलभद्रः ऋतकेवलिनो हि षट् । १. इस महावीर स्वामीके नव ऋषियोंके समूह 'गण' हैं । विमर्शः--यद्यपि महावीरके ११ गणधर थे, तथापि केवल नव ही गणधरोंके विभिन्न 'वाचन' हुए । 'अकम्पित' तथा 'अचलभ्राता' के और मेतार्य' तथा 'प्रभास के चूके परस्पर . समान ही 'वाचन' हुए थे, अत एव यहाँ महावीर स्वामीके नव ही. गणोंका कहना असङ्गत नहीं होता। यही बात 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित'के-. __"श्रीवीरनाथस्य गणधरेष्वेकादशस्वपि । ' द्वयोर्द्वयोर्वाचनयोः साम्यादासन् गणा नव ॥" कथनसे भी पुष्ट होती है । . २. गणाधिप ( गणधर, गणेश्वर ) ११ हैं, उनका क्रमश: पृथक-पृथक १-१ नाम है-१ इन्द्रभूतिः, २ अग्निभूतिः, ३ वायुभूतिः, ४ व्यक्तः, ५ सुधर्मा (-मन् ), ६ मण्डितः, ७ मौर्यपुत्रः, ८ अकम्पितः, ६ अचलभ्राता (-४),. १० मेतार्यः और ११ प्रभासः । इनके कुल पृथक्-पृथक् हैं । विमर्श:-प्रथम तीन (इन्द्रभूति, अग्निभूति और वायुभूति ) तथा अष्टम 'अकम्पित' गणधर गोतम' (+गौतम ) वंशमें उत्पन्न हैं, ४र्थ व्यक्त गणधर 'भारद्वाज' गोत्रोत्पन्न है, ५म 'सुधर्मा' (-मन् । + सुधर्म-म ) गणधर "अग्निवैश्य' गोत्रमें उत्पन्न है, ६ष्ठ 'मण्डित' तथा ७म 'मौर्यपुत्र' गणधर क्रमशः 'वसिष्ठ' तथा 'कश्यप' गोत्रमें उत्पन्न हुए हैं, हम 'अचलभ्राता' गणधर 'हारित' गोत्रोत्पन्न हैं और १०म 'मेतार्य' तथा ११श 'प्रभास' गणधर 'कौण्डिन्य गोत्रोत्पन्न हैं । ३. इस अवसर्पिणी कालमें अन्यकी उत्पत्ति असम्भव है, अत: 'जम्बूस्वामी' (-मिन् ) अन्तिम 'केवली' (-लिन् ) है ।। ४. 'श्रुतकेवलियों का क्रमशः १-१ नाम है, १ प्रभवप्रभुः, (+ प्रभवः). २ शय्यम्भवः, ३ यशोभद्रः, ४ सम्भूतविजयः, ५ भद्रबाहुः और ६ स्थूलभद्रः ।
SR No.002275
Book TitleAbhidhan Chintamani
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Hargovind Shastri
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1966
Total Pages566
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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