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( ३७ ) अमरकोष तथा अभिधानचिन्तामणि वर्तमान काल में उपलब्ध होनेवाले संस्कृत कोषग्रन्थोंमें अमरकोषके ही सर्वाधिक जनप्रिय होनेसे उसीके साथ तुलनात्मक विवेचनकर प्रस्तुत ग्रन्थकी महत्ता बतलायी जाती है। इस अभिधानचिन्तामणिकी कुल श्लोकसंख्या १५४२ है, जो प्रायः अमरकोषकी श्लोकसंख्याके बराबर ही है। फिर भी अमरकोषमें कहे गये नाम और उनके पर्यायोंकी अपेक्षा प्रकृत ग्रन्थमें उन्हीं नामोंके पर्याय अत्यधिक संख्या-कहीं-कहीं तो दुगुनीतकमें दिये गये हैं। दिग्दर्शनार्थ कुछ उदाहरण यहाँ दिये जाते हैं । यथाक्रमाङ्क नाम अ० को० की पर्यायसंख्या अ० चि० की पर्यायसंख्या १ सूर्य २ किरण
?? ३ चन्द्र . . २० .. ४ शिव
४८ ५ गोरी
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७ विष्णु ८. अग्नि
उपरिलिखित नामोंके पर्यायोंमें यदि अभिघानचिन्तामणिकी स्वोपज्ञ वृत्तिमें कथित पर्यायसंख्या जोड़ दी जाय तो उक्त संख्या कहीं-कहीं अमरकोषसे तिगुनी-चौगुनीतक पहुँच जायेगी।
- इसी प्रकार अमरकोषमें अवर्णित चक्रवर्तियों, अर्धचक्रवर्तियों, उत्सपिणी तथा अवसर्पिणी कालके तीर्थङ्करों एवं उनके माता, पिता, वर्ण, चिह्न
और वंश आदिका भी साङ्गोपाङ्ग वर्णन प्रस्तुत ग्रन्थमें किया गया है। ___ इसके अतिरिक्त जब कि अमरकोषमें अत्यल्प-संख्यक नदियों, पर्वतों, नगर-शाखानगरों, भोज्य पदार्थों के पर्यायोंका वर्णन किया गया है; वहाँ अभिधानचिन्तामणिमें लगभग एक दर्जन नदियों; उदयाचल, अस्ताचल, हिमालय, विन्ध्य आदि डेढ़ दर्जन पर्वतों; गया, काशी आदि सप्तपुरियोंके साथ कान्यकुब्ज, मिथिला, निषधा, विदर्भ आदि लगभग डेढ़ दर्जन देशों, वाल्मीकि, व्यास, याज्ञवल्क्य आदि ग्रन्थकार महर्षियों, अश्विन्यादि सत्ताइस नक्षत्रों और साङ्गोपाङ्ग गृहावयवोंके साथ बर्तनों; सेव, घेवर, लड्डू आदि