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________________ अभिधानचिन्तामणि: पूर्वोत्तरा भाद्रपदा द्वटयः प्रोष्ठापदाश्च ताः । १ रेवती तु पौष्णं २ दाक्षायण्यः सर्वाः शशिप्रियाः ॥ २६ ॥ (+अहिबध्नदेवताः ), उत्तरभाद्रपदाः ( २ स्त्री )। उक्त दोनों नक्षत्रोंका १-१ नाम और भी है-प्रोष्ठपदाः ( स्त्री ब० व० )। १. रेवती नक्षत्र' के २ नाम हैं-रेवती ( स्त्री ), पौष्णम् (न)॥ विमर्श:-इन 'अश्विनी' आदि २७ नक्षत्रोंके लिङ्ग तथा वचन अन्य शास्त्रानुसार इस प्रकार हैं-अश्विनीसे रोहिणीतक ४ नक्षत्र स्त्रीलिङ्ग, तथा बहुवचन, 'मृगशिर' स्त्रीलिङ्ग नपुंसक तथा एकवचन, 'पार्द्रा' स्त्रीलिङ्ग तथा एकवचन, 'पुनर्वसु, पुष्य' पुंल्लिङ्ग तथा एकवचन, 'अश्लेषा, मघा' स्त्रीलिङ्ग तथा बहुवचन, 'पूर्वफल्गुनी, उत्तरफल्गुनी' स्त्रीलिङ्ग तथा द्विवचन, 'हस्त' पंल्लिङ्ग स्त्रीलिङ्ग तथा एकवचन, चित्रा' स्त्रीलिङ्ग तथा एकवचन, 'स्वाति' स्त्रीलिङ्ग पुंल्लिङ्ग तथा एकवचन, 'विशाखा, अनुराधा' स्त्रीलिङ्ग तथा बहुवचन, 'ज्येष्ठा' स्त्रीलिङ्ग तथा एकवचन, 'मूल' पुंल्लिङ्ग नपुंसक तथा एकवचन, पूर्वाषाढा, उत्तराषाढा' स्त्रीलिङ्ग तथा बहुवचन, 'श्रवण' पुल्लिङ्ग स्त्रीलिंग तथा एकवचन, 'धनिष्ठा, शतभिषज' स्त्रीलिङ्ग तथा बहुवचन, 'पूर्वभाद्रपदा तथा उत्तरभाद्रपदा' स्त्रीलिङ्ग तथा द्विवचन, और 'रेवती' स्त्रीलिङ्ग तथा एकवचन है । 'मुकुट'ने जो-“अश्विनी, भरणी, रोहिणी आदि ३, पुष्य, आश्लेषा, हस्त आदि ३, अनुराधा आदि ८ और रेवती-ये १६ नक्षत्र एकवचन; पुनर्वसु, पूर्वफल्गुनी, उत्तरफल्गुनी, विशाखा, पूर्वभाद्रपदा, उत्तरभाद्रपदा-ये ६ नक्षत्र द्विवचन और कृत्रिका तथा मघा--ये २ नक्षत्र बहुवचन हैं" ऐसा कहा है, वह आर्षोक्तिविरुद्ध होनेसे चिन्त्य है । २. 'अश्विनी' से 'रेवती' तक समष्टि २७ रूपमें नक्षत्रोंके २ नाम है-दाक्षायण्यः, शशिप्रियाः (२ स्त्री । यहाँ बहुवचन नक्षत्रोंकी बहुलतासे है, उक्त दोनों शब्द नि० बहुवचन नहीं हैं )। विमर्श-यद्यपि "अष्टाविंशतिराख्यातास्तारका मुनिसत्तमः" इस वचन के अनुसार २८ नक्षत्रगणनाकी पूर्तिके लिए 'अभिजित्' नक्षत्रका भी सन्निवेश करना उचित था, तथापि "अभिजिद्भोगमेतद्वै वैश्वदेवान्त्यपादमखिलं , तत् । आद्याश्चतस्रो नाड्यो हरिभस्यतस्य रोहिणीविद्धम् ॥” इस वचनके अनुसार 'अश्विनी आदि नक्षत्रोंके समान 'अभिजित्' नक्षत्रका स्वतन्त्र मान नहीं होनेके कारण मुख्य २७ नक्षत्रोंका कथन त्रुटिपूर्ण नहीं समझना चाहिए ।
SR No.002275
Book TitleAbhidhan Chintamani
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Hargovind Shastri
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1966
Total Pages566
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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