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________________ २५ 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः १ तेषां यानं विमानो२ऽन्धः पीयूषममृतं सुधा ॥ ३ ॥ ३ असुरा नागास्तडितः सुपर्णका वह्नयोऽनिलाः स्तनिताः। ' उदधिद्वीपदिशो दश भवनाधीशाः कुमारान्ताः ॥४॥ ४ स्युः पिशाचा भूता यक्षा राक्षसाः किन्नरा अपि । किम्पुरुषा महोरगा गन्धर्वा व्यन्तरा अमी ॥५॥ ५ ज्योतिष्काः पञ्च चन्द्रार्कग्रहनक्षत्रतारकाः ।। ६ वैमानिकाः पुनः कल्पभवा द्वादश ते त्वमी ॥६॥ सौधर्मेशानसनत्कुमारमाहेन्द्रब्रह्मलान्तकजाः । १. 'उन देवोंके यान' ( विमान, सवारी ) का १ नाम है—विमानः (पु न । + व्योमयानम् । उन देवोंका यान विमान है, ऐसा सम्बन्ध होनेसे यौ० द्वारा-"वमानयानाः, वैमानिकाः, विमानिकाः,....." नाम भी 'देवों के होते हैं )। २. 'अमृत' ( देवोंके भोज्य पदार्थ ) के ३ नाम हैं-पीयूषम् (+ पेयूषम्), अमृतम् (२ न ), सुधा (स्त्री। + समुद्रनवनीतम् । यौ०-देवान्धः-न्धस , देवान्नम् , देवभोज्यम् , देवाहारः,....")। ३. ( जैन-सिद्धान्तके अनुसार “१ भवनपति ( या भवनवासी), २ व्यन्तर, ३ ज्योतिष्क और ४ वैमानिक" भेदसे देवोंके ४ भेद होते हैं; उनमें से क्रमप्राप्त 'भवनपति' देवोंके नामको पहले कहते हैं-) ये 'भवनपति' (या-भवनवासी') देव १० होते हैं-असुरकुमाराः, नागकुमाराः, तडित्कुमाराः, सुपर्णकुमाराः, वह्निकुमाराः, अनिलकुमाराः, स्तनितकुमारा:, उदधिकुमाराः, द्वीपकुमाराः, दिक्कुमाराः ॥ - विमर्श-ये देव कुमारके समान देखने में सुन्दर, मृदु, मधुर एवं ललित गतिवाले, शृङ्गार सुन्दर रूप एवं विकारवाले और कुमारके समान ही उद्धत वेष भाषा भूषण शास्त्र श्रावरण यान तथा वाहनवाले, तीव्र रागवाले एवं क्रीडारायण होते हैं, अत एव ये 'कुमार' कहे जाते हैं ।। . ४ . ( अब क्रमप्राप्त द्वितीय 'व्यन्तर' देवोंको कहते हैं-) ये 'व्यन्तर' देव ८ होते हैं--पिशाचाः, भूताः, यक्षाः, राक्षसाः, किन्नराः, किम्पुरुषाः, महोरगाः, गन्धर्वाः ॥ __५. (अब क्रमप्राप्त तृतीय 'ज्योतिष्क' देवोंको कहते हैं-) ये 'ज्योतिष्क' देव ५ होते हैं -चन्द्रः, अर्कः, ग्रहाः, नक्षत्राणि, तारकाः ।। ... ६.(अब सबसे अन्तमें क्रमप्राप्त चतुर्थ 'वैमानिक' देवोंको कहते हैं-). इन वैमानिक' देवोंके २ भेद हैं-१ कल्पभव और २ कल्पातीत । उनमें से प्रथम 'कल्पभव' वैमानिक देव १२ होते हैं-सौधर्मजाः, ऐशानजाः, सनत्कु
SR No.002275
Book TitleAbhidhan Chintamani
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Hargovind Shastri
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1966
Total Pages566
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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