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(४०) मुझे दूरस्थ रहने, शीशेके टाइपोंके सूक्ष्मतम होने तथा लेखनसंशोधनादिमें मानव-सुलभ दोष रह जाना असम्भव नहीं होनेसे नवमुद्रित इस ग्रन्थमें त्रुटिका सर्वथा अभाव कहनेका साहस तो नहीं ही किया जा सकता, अतएव इस ग्रन्थमें यदि कहीं कोई त्रुटि दृष्टिगोचर हो तो उसके लिए कृपालु पाठकोंसे करबद्ध प्रार्थनाके साथ क्षमायाचना करता हुआ आशा करता हूँ कि वे
गच्छतः स्खलनं कापि भवत्येव प्रमादतः। .
हसन्ति दुजेनास्तत्र समादधति सज्जनाः॥ इस सूक्तिको ध्यानमें रखकर मुझे अवश्यमेव क्षमा-प्रदान करनेकी सहज अनुकम्पा करेंगे । इति शम् ।।
विजयादशमी, वि० सं० २०२०
विवुध-सेवक :हरगोविन्द मिश्र, शास्त्री.