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अभिधानचिन्तामणिः शालिशेखरमत्वर्थमालिभर्तृधरा अपि । १ भोज्याद्भगन्धो व्रतलिटपायिपाशाशनादयः ॥ ७॥
२ पत्युः कान्ताप्रियतमावधूप्रणयिनीनिभाः । कारण 'शिवजी के पर्यायोंमें 'वृषध्वज के समान 'शूलध,जःका, 'शूलास्त्रः'के समान 'चन्द्राङ्कः'का, 'पिनाकपाणि: के समान 'अहिपाणि:'का. 'वृषाङ्कः'के समान 'चन्द्राङ्कः'का, 'चन्द्रमौलि. के समान 'गङ्गामौलका, 'शशिभूषण:'के समान 'शूलभूषण:का, 'शूलशाली के समान 'चन्द्रशानी'का, 'चन्द्रशेखरः'के समान 'गङ्गाशेखरः का, 'शूली'के समान · 'शूलवान्का, 'पिनाकमाली'के समान 'सर्पमाली'का, पिनाकर्ता के समान 'चन्द्रमा का और 'गङ्गाधरः' के समान 'चन्द्रधरः का प्रयोग नहीं होता है।
विमर्श:-'समान' अर्थमं प्रयुक्त निभ' शब्दसे उनके दुल्य वेतन, आयुध, लक्ष्म, शिरस, आभरण,..."शब्द यदि 'धार्यवाचक शब्दके बादमें रहें तो वे धारक के पर्यायवाचक हो जाते हैं। क्रमशः उदा०-वृषकेतन:, शूलायुधः, वृषलदमा (-क्ष्मन् ), चन्द्रशिराः (-रस ), चन्द्राभरण:....)॥ .
१. भोज्य अर्थात् खाने योग्य वस्तुके वाचक शन्दके बादमें 'भुज', अन्धः, व्रत, लिट , पायी, प, अाश, अशन' आदि शब्द रहें तो वे उन भोज्य वस्तुओंके भोक्ताओं ( भोजन करनेवालों )के पर्याय होते हैं । (क्रमशः उदा०-अमृतभुजः (-भुज ), अमृतान्धसः ( -न्धसं ), अमृतव्रताः, अमृतलिहः (-लिट ), अमृतपायिनः (-यिन् ), अमृतपाः, अमृताशाः, अमृताशनाः, आदि शब्द देवोंके भोज्य (. खाने योग्य वस्तु ) अमृतके बादमें 'भुज् ,......' आदि शब्द होनेसे देवोंके पर्यायवाचक होते हैं, क्योंकि 'अमृत' देवोंकी भोज्य वस्तु है, ऐसी रूढि है।
विमर्श-'यादि' शब्दसे उन ( भुज... ) के समानार्थक भोजन आदि शब्दोका ग्रहण है, अतः 'अमृतभोजनाः,....' शब्द भी देवोंके पर्यायवाचक होते हैं । यहाँ भी कवि-रूढिसे प्रसिद्ध शब्दोंका ही ग्रहणं होनेसे जिस
प्रकार 'अभृतभुजः, अमृताशनाः' यादि शब्द देवोंके पर्यायवाचक * होते हैं; उसी प्रकार 'अमृतवल्माः ' आदि शब्द 'देवों के पर्यायवाचक नहीं होते ।।
२. 'पति'वाचक शब्दके बादमें 'कान्ता, प्रियतमा, वधू, प्रयायिनी' के निभ अर्थात् सदृश ( कान्तादिके सदृश-रमणी, वल्लभा, प्रिया आदि ) शब्द रहें तो वे शब्द उसकी भार्याके पर्यायवाचक होते हैं। (क्रमशः उदा०-शिवकान्ता, शिवप्रियतमा, शिववधूः, शिवप्रणयिनी ( तथा सदृशार्थक 'निभ' शब्दसे ग्राह्यके उदा०-'शिवरमणी, शिववल्लभा, शिवप्रिया,"")