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'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः १ कलत्राद्वररमणप्रणयीशप्रियादयः ॥८॥ २ सख्युः सखिसमा ३ बाह्याद्गामियानासनादयः ।
शब्द 'शिव'के बादमें उनकी रमणी ग्रादि शब्दके होनेसे शिवजीकी भार्या पार्वतीके पर्यायवाचक होते हैं। क्योंकि 'पार्वती' शिवजीकी भार्या है, यह रूद्धि है।
विमर्श-यहाँ भी कवि-रूढिसे प्रसिद्ध शब्दोंका ही ग्रहण होनेसे जिस प्रकार 'शिवकान्ता, शिववल्लभा' अादि शब्द पार्वतीके पर्यायवाचक हैं, उसी प्रकार 'शिवपरिग्रहः' आदि शब्द भी पार्वतीके पर्यायवाचक नहीं है ।।
१. कलत्र अर्थात् स्त्रीवाचक शब्दके बादमें 'वर, रमण, प्रणयी, ईश, प्रिय' आदि शब्द रहें तो वे उनके पतिके पर्यायवाचक होते हैं । (क्रमशः उक-गौरीवर:, गौरीरमणः, गौरीप्रणची ( -यिन् , गौरीशः,"शब्द गौरीके पति शिवजीके पर्यायवाचक है; क्योंकि शिवजी पार्वती के पति हैं, ऐसी रूहि है।
विमर्श-'आदि' शब्दसे तत्समानार्थक-('वर, रमण' आदि शब्दोंके समान अर्थवाले 'पति, भर्ता, वल्लभ' आदि शब्दोंका ग्रहण होनेसे 'गोरीपतिः, गौरीमती ( -तृ ), गौरीवल्लभः' अादि शब्द भी गौरीके पति शिवजीके पर्याय हैं। यहाँ भी कवि-रूढिसे प्रसिद्ध शब्दोंका ही ग्रहण होनेसे जिस प्रकार “गोरीवर' आदि शब्द शिवजीके पर्यायवाचक होते हैं, उसी प्रकार 'गङ्गावरः' आदि शब्द शिवजीके पर्यायवाचक नहीं होते ॥ .. २. सखि अर्थात् मित्रके वाचक शब्दके बादमें 'सखि' और उसके ( सखि शब्दके ) समान 'सुहृद्' आदि शब्द रहें तो वे उसके मित्रके • पर्यायवाचक होते हैं । (क्रमशः उदा०-श्रीकण्ठसखः, मधुसखः, वायुसखः, अग्निसख:, आदि शब्द क्रमशः 'कुबेर, कामदेव, अग्नि, और वायु'के पर्यायवाचक हैं; क्योंकि 'श्रीकण्ठ (शिवजी), मधु (वसन्त), वायु और अग्नि' के क्रमशः "कुबेर, कामदेव, अग्नि और वायु' मित्र हैं, ऐसी रूढि है।
विमर्श-समानार्थक 'सम' शब्दसे 'सखि'के समान अर्थवाले 'सुहृद्' आदि शब्दका ग्रहण होनेसे 'कामसुहृद् , काममित्रम्' आदि शब्द भी कामके मित्र 'वसन्त'के पर्याय हो जाते हैं । यहाँ भी कविरूढिसे प्रसिद्ध शब्दोंका हो. ग्रहण होनेके कारण जिस प्रकार 'श्रीकण्ठसखः' शब्द शिवजीके मित्र "कुबेर'का पर्यायवाचक है, उसी प्रकार 'धनदसखः' शब्द धनद ( कुबेर )के मित्र शिवजीका पर्यायवाचक नहीं होता ।।
३. 'वाह्य' अर्थात् वाहन ( सवारी)-वाचक शब्दके बाद 'गामी,