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________________ अभिधानचिन्तामणि: - १स्तद्भः खलूरिका | २सर्वाभिसारो सर्वौघः सर्वसम्न्नहनं समाः ॥ ४५२ ।। ३ लोहाभिसारो दशम्यां विधिर्नोराजनात्परः । ४ प्रस्थानं गमनं व्रज्याऽभिनिर्याणं प्रयाणकम् ॥ ४५३ ॥ यात्राऽभिषेणनं तु स्यात् सेनयाऽभिगमो रिपौ । ६ स्यात् सुहृद्बलमासारः ७प्रचक्रं चलितं बलम् ॥ ४५४ ॥ ८प्रसारस्तु प्रसरणं तृणकाष्ठादिहेतवे । अभिक्रमो रणे यानमभीतस्य रिपून् प्रति ॥ ४५५ ॥ - १६६ शेषश्चात्र - शस्त्राभ्यास उपासनम् । १. 'शस्त्राभ्यास ( चांदमारी) करनेके मैदान का २ नाम है· खलूरिका ॥ २. ‘सब सेनाओके साथ आक्रमण या युद्धार्थ प्रस्थान करने के ३ नाम है—– सर्वाभिसारः, सर्वौघः, सर्वसन्नहनम् ॥ ३. ‘विजया दशमी के दिन दिग्विजय यात्रा के पहले, शान्त्वक छिड़कने के बाद किये जानेवाले ( शस्त्रों का प्रदर्शन, रूप ) विधि विशेष' का १ नाम है— लोहाभिसारः ' ।। विमर्श - अमरसिहने तो दिग्विजय यात्राके पूर्व शान्त्युदक के छिड़कने का ही नाम 'लोहाभिसार' कहा है. ! यथा - लोहाभिसारोऽस्त्रभृतां राज्ञां नीराजनविधिः ( श्रम० २||६४ ) || गमनम्, व्रज्या, ५. 'सेना के साथ शत्रु पर चढ़ाई करने' का १ नाम है- अभिषेणनम् ॥ ६. 'मित्रबल' का १ नाम है - श्रासारः ।। ४. 'यात्रा, प्रस्थान करने के ६ नाम हैं - प्रस्थानम्, अभिनिर्याणम्, प्रयाणकम् (+ प्रयाणम् ), यात्रा || ७. 'प्रस्थान की हुई सेनाका १ नाम है - प्रचक्रम् ॥ ८. 'सेना से बाहर तृण-जल श्रादिके लिए जाने का १ नाम हैप्रसारः । ( अमर सिंहने " श्रासारः, प्रसारः " दोनोंको एकार्थक माना है ) (THRO RICE & ) 11 ६. 'निर्भय होकर युद्ध में शत्रुके प्रति श्रागे बढ़ने का १ नाम अभिक्रमः ॥ १. तदुक्तम् - " लोहाभिसारस्तु विधिः परो नीराजनान्नृपैः । दशम्यां दंशितैः कार्यः ॥ इति ॥
SR No.002275
Book TitleAbhidhan Chintamani
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Hargovind Shastri
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1966
Total Pages566
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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