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________________ २४० अभिधानचिन्तामणिः -त्रिहल्यं तु त्रिसीत्य त्रिगुणाकृतम् । तृतीयाकृतं रविहल्यायेवं शम्बाकृतश्च तत् ।। ३४ ॥ ३बीजाकृतं तूतकृष्टं द्रौणिकाऽऽढकिकादयः।। स्युोणाढकवापादौ ५खलधानं पुनः खलम् ।। ३५ ।। ६चूर्णे क्षोदोऽऽथ रजसि स्युडूं लीपांसुरेणवः । प्लोष्टे लोष्टुर्दलिर्लेष्टुरवल्मीकः कृमिपर्वतः ॥ ३६ ।। वम्रीकूटं वामलूरो नाकुः शक्रशिरश्च सः। १०नगरी पू: पुरी द्रङ्गः पत्तनं पुटभेदनम् ।। ३७ ।। निवेशनमधिष्ठानं स्थानीयं निगमोऽपि च। ... ' १. 'तिखारे (हलसे तीन बार जोते ). हुए खेत'के ४ नाम हैत्रिहल्यम्, त्रिसीत्यम् , त्रिगुणाकृतम् , तृतीयाकृतम् ॥ २. 'दोखारे ( हलसे दो बार जोते हुए खेत'के ·५ नाम है-द्विहल्यम्, द्विसीत्यम् , द्विगुणाकृतम् , द्वितीयाकृतम् , शम्बाकृतम् ।। ३. 'बीज बोनेके बाद जोते गए खेत'के २ नाम हैं-बीजाकृतम् , उसकृष्टम् ॥ ४. 'एक द्रोण, एक आढफ बीज बोने योग्य खेत'का क्रमशः १-१ नाम है-'द्रौणिकः, आढकिकः। विमर्श-श्रादि' शब्दसे 'एक खारी बीज. बोने योग्य खेत'का १ नाम है-खारीकः। इसी प्रकार से १-१ द्रोण, आढक या खारी आदि परिमित अन्न रखने पकाने या अँटने योग्य वर्तन का भी क्रमशः 'द्रौणिकः, श्राढकिका, खारीक:' आदि १-१ नाम जानना चाहिए । ५. 'खलिहान'के २ नाम हैं-खलधानम्, खलम् ॥ ६. 'चूर्ण'के २ नाम है-चूर्णः (पु न ), क्षोदः ।। ७. 'धूल'के ४ नाम हैं- रजः (-जस् , न ), धूली (स्त्री,+धूलिः ), पांसुः (पु), रेणुः (स्त्री)॥ ८. ढेला' के ४ नाम हैं-लोष्टः ( पु न ), लोष्टुः (पु) , दलिः (स्त्री), लेष्टुः (पु) ॥ ६. 'वामी, दिअकांड' के ६ नाम हैं-वल्मीकः (न), कृमिपर्वतः, वनीकूटम्, वामलूर:, नाकुः (पु), शक्रशिरः (- स, न)॥ १०. 'नगरी (शहर ) के १० नाम हैं-नगरी (स्त्री; नगरम, न)। पूः (पुर् ), पुरी ( त्रि ), द्रङ्गः, पत्तनम् (+पट्टनम् ), पुटभेदनम् , निवेशनम् , अधिष्ठानम् , स्थानीयम् , निगमः।। विमर्श--वाचस्पति ने इस ग्रामके निम्नलिखित विशेष भेद स्वीकार किये हैं-१०८ गावों में सबसे लम्बे गांवको 'स्थानीयम्'; उसके आधे लम्बेको
SR No.002275
Book TitleAbhidhan Chintamani
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Hargovind Shastri
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1966
Total Pages566
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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