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________________ अभिधानचिन्तामणिः १मण्डलेन तुयन्नृत्तं स्त्रीणां हल्लीसकं हि तत् ।। २पानगोष्ठयामुच्चतालं ३रणे वीरजयन्तिका ॥ १६५ ॥ ४स्थानं नाट्यस्य रङ्गः स्यात् ५पूर्वरङ्ग उपक्रमः। ६अङ्गहारोऽङ्गविक्षेपो ७व्यञ्जकोऽभिनयः समौ ॥ १६६ ॥ स चतुर्विध आहार्यो रचितो भूषणादिना। वचसा वाचिकोऽङ्गेनाङ्गिकः सत्त्वेन सात्त्विकः ॥ १६७ ॥ हस्यान्नाटकं प्रकरणं भाणः प्रहसनं डिमः। व्यायोगसमवकारौ वीथ्यकेहामृगा इति ।। १६८ ॥ विमर्शः—यहाँपर भी भरतादि प्रतिपादित इनके परस्पर भेद-विशेषोंका आश्रय नहीं किया गया है, किन्तु सामान्यतः सबको पर्यायवाचक कहा गया है । १. बहुत सी स्त्रियोंका घूम-घूम मण्डलाकार रूपमें नाचनेका १ नाम हैहल्लीसकम् (न ।+पुन)॥ २. पानगोष्ठो ( मदिरा आदि पीने के स्थान ) में नाचने'का १ नाम है-उच्चतालम् ॥ ३. 'युद्ध भूमिमें नाचने'का १ नाम है-वीरजयन्तिका ॥ ५. 'नाट्यस्थल ( स्टेज )का १ नाम है-रङ्गः ॥ . ५. 'नाटकके श्रारम्भ' का १ नाम है-पूर्वरङ्गः ॥ ६. 'नाटकमें भावप्रदर्शनार्थ अङ्गोंके सञ्चालन करने के २ नाम हैं -- अङ्गहार:, अङ्गविक्षेपः ॥ ७. 'भावप्रदर्शन, अभिनय करने के २ नाम है-व्यञ्जकः, अभिनयः ॥ ८. उस 'अभिनय' के ४ भेद हैं-१ भूषणादिसे किये गये अभिनयको -आहार्यः, २-वचनमात्रसे किये गये अभिनयको 'वाचिकः,' अङ्गों ( हाथ पैर-भ्र आदिके सञ्चालन )से किये गये अभिनयको 'आङ्गिकः' और ४ सत्त्व (मन या गुण )से किये गये अभिनयको 'सात्त्विकः' कहते हैं । ६. 'उस अभिनेय'के १० प्रकार हैं-- नाटकम् , २ प्रकरणम् , ३ भाणः, ४ प्रहसनम् , ५ डिमः, ६ व्यायोगः, ७ समवकारः, ८ वीथी, ६ अङ्कः, और १० ईहामृगः। विमर्श :-नाटक आदि १० अभिनेय प्रकारोंका लक्षण तथा उनके अङ्गोपाङ्ग, भाषा, पात्र आदिका सविस्तर वर्णन 'साहित्यदर्पण में विश्वनाथ . महापात्र ने (६।२७८-५३४ ) में किया है, जिज्ञासुओंको उसे वहीं देखना चाहिए । यहाँपर केवल जिस कारिकामें उक्त नाटकादिका मुख्य लक्षण विश्वनाथने कहा है, उसकी संख्या तथा उदाहरणभूत ग्रन्थके नाममात्रका उल्लेख किया जाता है। १ नाटक (६।२८०), यथा-बालरामायणम् , अभिज्ञान
SR No.002275
Book TitleAbhidhan Chintamani
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Hargovind Shastri
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1966
Total Pages566
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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