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________________ अभिधानचिन्तामणिः १ - इत्यङ्गे पच वायवः ।। १७५ ।। Reservatiवाक्षं च गहनं झषः । कान्तारं विपिन कक्षः स्यान् षण्डं काननं वनम् ॥ १५६ ॥ दवो दाव : ३प्रस्तारस्तु तृणाटव्यां झषोऽपि च । पोपाभ्यां वनं वेलमारामः कृत्रिमे वने ॥ १७० ॥ निष्कुटस्तु गृहारामो बाह्यारामस्तु पौरकः । ७आक्रीडः पुनरुद्यानं =राज्ञां त्वन्तःपुरोचितम् ॥ १७८ ॥ तदेव प्रमदवन ममात्यादेस्तु निष्कुटे | वाटी पुष्पाक्षाच्चासौ १० क्षुद्रारामः प्रसीदिका ।। १७- ।। ११ वृक्षोऽगः शिखरी च शाखि फलदा बर्हिरि मो जीर्णोद्रुविंटपी कुठः क्षितिरुहः कारस्करोत्रिरः । नन्द्यावर्त्तकरालिको तरुत्रसू पर्णी पुलाक्यंह्निपः सालाऽनोकइगच्छपादपनगा रूक्षागमौ पुष्पदः ॥ १८० ॥ २७२ . १. 'शरीर में स्थित अर्थात् सञ्चार करनेवाले ये पाँच वायु · (प्राण, अपान, समान, उदान तथा ध्यान ) हैं || || वायुकायिक समाप्त ॥ २. ( अब यहाँ से ४ | २६७ तक वनस्पतिकायिक जीवोंका वर्णन करते है - 'जङ्गल' के १४ नाम है - अरण्यम् ( पु न ), अटवी, सत्रम्, वार्क्षम्, गहनम् झषः, कान्तारम् (पुन), विपिनम्, कक्षः, षण्डम् ( पु न ), काननम्, वनम् दवः, दावः ॥ • ३. ‘अधिक घासवाले जङ्गल' के ३ नाम हैं - प्रस्तारः, तुणाटवी, झषः । ४. 'कृत्रिम वन' के ४ नाम है — पत्रनम्, उपवनम्, वेलम्, आरामः ॥ ५. 'गृहके पासवाले बगीचे' के २ नाम हैं - निष्कुटः, गृहारामः ॥ ६. 'गाँव या नगर के बाहरवाले बगीचे के २ नाम हैं - बाह्यारामः, पौरकः ॥ ७. ' क्रीडा ( विलास ) के लिए बनाये गये बगीचे' के २ नाम हैंश्राक्रीड:, उद्यानम् ( २ पु न ) ॥ '८. 'राजाओंके अन्तःपुर ( रानियों ) के योग्य घिरे हुए बगीचे का १ नाम है - प्रमदवनम् ॥ ६. 'फुलवाड़ी' अर्थात् 'मंत्री आदि / धनिक - सेठों या बेश्यादिकों ) के घर के निकटस्थ बगीचे)' के २ नाम है - पुष्पवाटी, वृक्षवाटी ॥ १०. 'छोटे बगीचे' के २ नाम हैं- क्षुद्वारामः, प्रसीदिका ॥ ११. 'पेड़, वृक्ष' के ३० नाम हैं - वृक्षः, अगः, शिखरी ( - रिनू ),
SR No.002275
Book TitleAbhidhan Chintamani
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Hargovind Shastri
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1966
Total Pages566
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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