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________________ मर्त्यकाण्ड : ३ ] 'मणिप्रभा व्याख्योपेतः १स शैर्षच्छेदिकः शीर्षच्छेद्यो योवधमर्हति । २प्रमीत उपसम्पन्नः परेतप्रेतसंस्थिताः ॥ ३७ ॥ नामा लेख्ययशःशेपौ व्यापन्नोपगतौ मृतः । परासुस्तद दानं तदर्थमौर्ध्वदेहिकम् ॥ ३८ ॥ ४मृतस्नानमपस्नानं पूनिवापः पितृतर्पणम् । ६ चितिचित्याचितास्तुल्या ७ऋजुस्तु प्राञ्जलोऽञ्जसः ॥ ३६ ॥ दक्षिणेसरलोदारौ शठस्तु निकृतोऽनृजुः । १० क्रूरे नृशंसनिस्त्रिंशपापा ११धूर्तस्तु वः ॥ ४० ॥ व्यंसकः कुहको दण्डाजिनिको मायिजालिकौ । ६६ विमर्श - स्मृतिकारोंने ६ प्रकार के 'आततायी' कहे हैं, यथा-१ आग लगानेवाला; २ विष खिलानेवाला, ३ हाथमें शस्त्र लिया हुआ, ४ धन चुरानेवाला, ५ खेत ( खेत के धान्य, या - आर ( खेतकी मेंड़ = सीमा ) काटकर खेत चुरानेवाला और ६ स्त्रीको चुरानेवाला । याज्ञवल्क्य स्मृतिकारने तो - " वध करने के लिए तलवार ( या अन्य कोई घातक शस्त्र ) उठाया हुआ, विषदेनेवाला, आग लगानेवाला, शाप देनेके लिए हाथ उठाया हुआ, अथर्वण विधि मारनेवाला, राजाके यहां चुगलखोरी करनेवाला, स्त्रीका त्याग करनेवाला, छिद्रान्वेषण करनेवाला, तथा ऐसे ही अन्यान्य कार्य करने वाले सबको आततायी जानना चाहिए" ऐसा कहा है । ( या. स्मृ ३ | ३१ ) । १. “शर काटने योग्य'के २ नाम हैं - शैर्षच्छेदिकः, शीर्षच्छेद्यः ॥ २. 'मरे हुए’के १२ नाम है - प्रमीत:, उपसम्पन्नः, परेतः प्रेतः, संस्थितः नामशेषः, आलेख्यशेषः, यशः शेषः, व्यापन्नः, उपगतः मृतः, परासुः ॥ ३. 'मरे हुए व्यक्ति के उद्देश्य से उसके मृत्युके दिन किये गये पिण्ड दान, आदि कार्य का १ नाम है - और्ध्वदेहिकम् (+ ऊर्ध्वदेहिकम्, श्रौर्ध्वदैहिकम् ) । ४. 'मरनेके बाद स्नान करने' के २ नाम हैं— मृतस्नानम्, अपस्नानम् ॥ ५. ‘पितरोंके तर्पण करने’के २ नाम हैं –— निवापः, पितृतर्पणम् ।। ६. 'चिता' के ३ नाम हैं- चितिः, चित्या, चिता ॥ ७. 'सूधा' के ३ नाम हैं - ऋजुः प्राञ्जल:, अञ्जसः ॥ ८. 'उदार' के ३ नाम हैं - दक्षिणः, सरल:, उदारः ॥ C. 'टेढा, शन' के ३ नाम हैं- - शठः ( + शण्ठः ), निकृतः, श्रनृजुः ।! १०. 'क्रूर' के ४ नाम हैं-करः, नृशंसः, निस्त्रिंशः, पापः ॥ ११. 'धूर्त, ठग' के ७ नाम हैं- धूर्त:, वञ्चकः, व्यंसकः, कुहकः, दाडा जिनिक:, मायी (यिन् । + मायावी - विनू, मायिकः ), जालिकः ॥
SR No.002275
Book TitleAbhidhan Chintamani
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Hargovind Shastri
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1966
Total Pages566
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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