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अभिधानचिन्तामणिः . श्योऽभिमन्त्र्य निहन्येत स स्यात्पशुरुपाकृतः ॥ ४६३ ॥ -२परम्पराकं शसनं प्रोक्षणं च मखे वधः । ३हिंसा) कर्माभिचारः स्याद् ४यज्ञाहं तु यज्ञियम् ॥ ४६४ ॥ पहविः सान्नाय्य६मामिक्षा शृतोष्णक्षीरगं दधि । क्षीरशरः पयस्या च ७तन्मस्तुनि तु वाजिनम् ॥ ४६५ ॥ पहव्यं सुरेभ्यो दातव्यं पितृभ्यः कव्यमोदनम् । १०ाज्ये तु दधिसंयुक्त पृषदाज्यं पृषातकः ॥ ४६६ ॥ ११दना तु मधु संपृक्तं मधुपक महोदयः। .... १२हवित्री तु होमकुण्डं १३हव्यपाकः पुनश्चरुः ॥ ४६७ ।।
१. 'अभिमन्त्रितकर यज्ञमें वध्य किये जानेवाले पशु'का १ नाम हैडपाकृतः ॥ . २. 'यज्ञीय पशु-वध के ३ नाम हैं-परम्पराकम् , शसनम् (+ शमनम् ), प्रोक्षणम् ॥
३. 'शत्र श्रादिकी हिंसाके लिए किये जानेवाले कर्म ( मारण, मोहन, उच्चाटन, आदि)का १ नाम है-अभिचारः ।।
४. 'यज्ञके लिए किये जानेवाले हिंसा कर्म'का १ नाम है-यज्ञियम् ।। ५. 'हविष्य के २ नाम हैं-हविः (-विष , न.), सान्नाय्यम् ।
६. 'उबाले हुए गर्म दूधमें छोड़े गये दही'के ३ नाम है-श्रामिक्षा, क्षीरशरः, पयस्या ॥
७. पूर्वोक्त आमिक्षाके मांड (मलाई )का १ नाम है-वाजिनम् ।।
८. 'देवताओंके उद्देश्यसे दिये जानेवाले पाक ( हविष्य, खीर )का १ नाम है-हव्यम् ॥
६. 'पितरोंके उद्देश्य से दिये जानेवाले पाक'का १ नाम है-कव्यम् ।।
विमर्श-'श्रतिज्ञों का मत है कि देवों या पितरों किसीके उद्देश्यसे दिये जानेवाले पाक के 'हव्यम् , कव्यम्' ये दोनों ही नाम हैं ॥ ...
१०. 'दधि-बिन्दुसे युक्त घी'के २ नाम हैं-पृषदाज्यम् (+दध्याज्यम् ), पृषातकः ॥
११. 'मधुपर्क ( शहद मिले हुए दही ) के २ नाम है-मधुपर्कम् , महोदयः ।।
१२. 'हवनके कुण्ड'के २ नाम हैं-हवित्री, होमकुण्डम् ॥
१३. 'हव्य ( देवोद्देश्यक खीर आदि ) को पकाने, या-उक्त हव्यको पकानेके बर्तन'के २ नाम हैं-हव्यपाकः, चरुः (पु)॥ ..