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मर्त्यकाण्डः ३ ]
'मणिप्रभा' व्याख्योपेतः
- १भावहावहेलास्त्रयोऽङ्गजाः ।। १७३ ।।
रसा कोपना भामिनी स्या ३च्छेका मत्ता च वाणिनी। ४कन्या कनी कुमारी च ५गौरी तु नग्निकाऽरजाः ॥ १७४॥ ६ मध्यमा तु दृष्टरजास्तरुणी युवतिश्चरी । तलुनी दिक्करी ७वर्या पतिंवरा स्वयंवरा ॥ १७५ ॥ सुवासिनी वधूटी स्याच्चिरिण्ट्य
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(क्रोधादिके अवसर में भी मधुर चेष्टा होना), शोभा (रूप, यौवन, सौन्दर्यादि से अतों का शोभित होना ), धीरत्वम् ( अचपलता ), कान्तिः ( काम द्वारा उक्त 'शोभा' का बढ़ना ), दीप्ति: ( उक्त 'कान्ति' का ही अत्यधिक बढ़ना ) |
१. वक्ष्यमाण ३ अलङ्कार स्त्रियोंके 'अङ्गज' होते हैं, उनका अथ सहित क्रमशः वक्ष्यमाण १-१ नाम है- -भाव: ( कामजन्य विकार से शून्य शरीरमें थोड़ा कामज विकार होना ), हाव: ( कटाक्षादिसे सुरतेच्छा के प्रकाशन से कुछ-कुछ लक्षित होनेवाला भाव ), हेला ( उक्त हावका अधिक प्रकाशन ) ॥
विमर्श - इन २० ( विश्वनाथसम्मत २८ ) श्रलङ्कारोंके विस्तृत लक्षण तथा उदाहरण साहित्यदर्पण ( ३ | १३० - १५७ ) में जिज्ञासुओं को देखना चाहिए ||
२. 'क्रोधशीला स्त्री'का १ नाम है - भामिनी ( + कोपना ) | ३. 'चतुर एवं मत्त स्त्री' का १ नाम है - वाणिनी ॥
४. 'कन्या ( क्वारी स्त्री' ) के ३ नाम हैं - कन्या, कनी, कुमारी ॥
५. ' जिसका रजोधर्म ( मासिक धर्म ) श्रारम्भ नहीं हुआ हो उस स्त्री' के ३ नाम है - गौरी, नग्निका, अरजा: ( -जस् ) ॥
विमर्श - 'अष्टवर्षा भवेद् गौरी दशमे नग्निका भवेत्' अर्थात् ८ वर्षकी कन्या 'गौरी' और १० वर्षकी कन्या 'नग्निका' संज्ञक है, इस धर्मशास्त्रोक्त भेदका अभय यहाँ नहीं किया गया है ||
६. 'तरुणी' ( नौजवान ) स्त्री' के ७ नाम है - मध्यमा, दृष्टरजाः ( - जस्), तरुणी, युवतिः, चरी, तलुनी, दिक्करी ॥
७. 'पतिको स्वयं वरण करनेवाली स्त्री' के ३ नाम हैं - वर्या, स्वयंवरा ॥
८. 'आरम्भ में होनेवाले युवावस्था के लक्षणोंवाली विवाहिता स्त्री' के ३ नाम है — सुवासिनी ( + स्ववासिनी ), वधूटी (+ वध्वटी), चिरिएटी ( + चिरण्टी, चरिण्टी, चरण्टी ) ॥ ६ अ० चि०
पतिंवरा,