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देवकाण्डः २] 'मणिप्रभा'व्याख्योपेतः
. -१चतुर्थे त्वरके नराः। पूर्वकोट्यायुषः पञ्चधनुःशतसमुच्छ्रयाः॥४७॥ २. पश्चमे तु वर्षशतायुषः सप्तकरोच्छ्रयाः।
षष्ठे पुनः षोडशाब्दायुषो हस्तसमुच्छ्रयाः॥४८॥ एकान्तदुःखप्रचिता ३उत्सपिण्यामपीदृशाः। । पश्चानुपूर्व्या विज्ञेया अरेषु किल षट्स्वपि ॥ ४६ ॥
ग्रन्थकारकी 'स्वोपजवृत्ति' तथा अग्रिम वचन ( ३ । ५५१ )के अनुसार 'गव्यूत'का मान एक कोश है, किन्तु पाठान्तरमें 'गव्यूतिः' शब्द होनेसे तथा आगे ( ३ । ५५२में ) गव्यूत' तथा 'गव्यूति'-इन दोनों शब्दोंके परस्पर पर्यायवाची होनेसे; तथा दिगम्बरजैन सम्प्रदाय एवं अन्यान्य कोषग्रन्थोंमें भी 'गव्यूति' शब्दका प्रयोग दो कोश-परिमित मार्ग-विशेषमें होनेसे यहाँ भी 'गव्यूत' शब्दका दो कोश मानना ही युक्तिसंगत प्रतीत होता है । तत्त्वार्थराजवार्तिकके अनुसार दो सहस्र दण्ड अर्थात् आठ हजार (८०००) हाथका एक गव्यूत होता है ।
१. चौथे ( 'दुःषमसुषमा' नामक ) अरमें मनुष्योंकी आयु पूर्वकोटि तथा ऊँचाई पांच सौ धनुष होती है ।
विमर्श :-८४ लाख वर्षों का १ पूर्वांग और ८४ लाख पूर्वांगोंका अर्थात् सत्तर लाख छप्पन हजार करोड़ वर्षोंका १ पूर्व होता है, उसी प्रमाण से १ करोड़ पूर्वपरिमित अायु चतुर्थ अर (दुःषमसुषमा ) के मनुष्योंकी होती है। उन मनुष्यों की ऊँचाई ५००धनुष अर्थात् २००० हाथ होती है, क्योंकि १ धनुष ४ हाथ का होता है। ॥ - २: पञ्चम ('दुःषमा' नामक ) अरमें मनुष्योंकी आयु सौ वर्ष तथा ऊँचाई सात हाथ होती है और षष्ठ ('एकान्तदुःषमा' अर्थात् 'दुःषम दुःषमा' नामक ) अरमें मनुष्योंकी आयु सोलह वर्ष तथा ऊँचाई एक हाथ होती है । इस अरमें प्राणी बहुत दुःखी रहते हैं ।
३. 'उत्सर्पिणी' कालमें भी इन ६ अरों के विपरीतक्रमसे मनुष्योंकी श्रायु, ऊँचाई तथा भोजनादि जानना चाहिये ॥
* ........तत्र षडङगुलः पादः, द्वादशाङ्गुलो वितस्तिः, द्विवितस्तिहस्तः, द्विहस्तः किकुः, द्विकिष्कुर्दण्डः, द्वे दण्डसहस्र 'गव्यूतम्' । चतुर्गव्यूतं योजनम् ।
(तत्त्वा० रा. वा० (३ । ३८ सूत्रस्य ) टीका पृ० २०८)। • तथा च बृहस्पति:-'धनुर्हस्तचतुष्टयम् ।' इति ।