Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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परमाणु एक ही है। काकवडता वा रूप आदि भेदोंके समान परमाणुके भेद नहीं। विज्ञानादेतवादियों में
% भाषा का कहना है कि राग द्वेष आदि धर्म वा प्रमाण प्रपेय विज्ञानरूप पदार्थ आदि अपने अपने लक्षणोंमे भिन्न हैं तो भी उन सबका समुदाय विज्ञान पदार्थ एक ही है। राग द्वेष वा प्रमाण आदि भेदोंके समान विज्ञानके भेद नहीं । नैयायिक वैशेषिक वा सर्वसाधारणका कहना है कि पटके कारण तंतु काले पीले ६ हरे आदि अनेक प्रकारके होते हैं तो भी उनका समुदाय चित्रपट एक ही है। तंतुओंके भेदसे चित्रपट के भेद नहीं होते उसीप्रकार यद्यापे अपने अपने लक्षणोंसे सम्यग्दर्शन आदि भिन्न भिन्न हैं तो भी है तीनोंका समुदाय मोक्षमार्ग एक ही है। तीनोंके समुदायस्वरूप मोक्षमार्गको एक कहनेमें किसीप्रकार है का विरोध नहीं आ सकता।
एषां पूर्वस्य लाभे भजनीयमुत्तरं ॥३०॥ सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र तीनोंमें पहिले पहिलेकी प्राप्ति होनेपर उत्तर उत्तरको प्राप्ति भाज्य है । अर्थात् सम्यग्दर्शनके हो जानेपर सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र वा सम्यग्ज्ञानके हो 5 जानेपर सम्यकचारित्र प्राप्त हो या न हो यह नियम नहीं, प्राप्त हो भी सकते हैं और न भी प्राप्त हो सकते हैं। परन्तु
विज्ञानाद्वैतवादो, प्रमाण, प्रमेय, प्रमिति प्रादि ज्ञानके ही मेद मानते हैं । विज्ञानसे भिन्न प्रमाणादि पदार्थ उनके यहां कुछ भी नहीं हैं। २ सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और स्वरूपाचरण चारित्र यद्यपि तीनों चौथे गुणस्थानमें साथ २ होते हैं परन्तु सम्यग्दर्शन होने पर श्रुतज्ञान तथा केवलज्ञानकी प्राप्ति क्रमसे पजनीय है-अर्थात् श्रुतज्ञानकी पूर्णता एवं अवधि मनापर्यय आदि ज्ञानका क्षयोपशमविशेष केवलज्ञान पर्यंत प्राप्तव्य है संग्राह्य है, उसीपकार सम्यग्ज्ञान होनेपर भी देशचारित्र, सकलचारित्र, यथाख्यात. चारित्रपर्यंत क्रमशः प्राप्तव्य हैं-गृहीतव्य हैं।
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