Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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भाषा
व०स०
ASSARSH
ई सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र इन तीनोंके भी लक्षण आपसमें भिन्न हैं इसलिये ये तीनों एक मार्ग
स्वरूप नहीं हो सकते, भिन्न २ मार्गस्वरूप ही कहे जायगे इस सीतसे सम्यग्दर्शन आदि तीनोंका | मिलना एक मोक्षका मार्ग है यह नहीं कहना चाहिये किंतु वे तीनों तीन मोक्षके मार्ग हैं यह अर्थ कहना चाहिये ? सो ठीक नहीं । बाह्य और अभ्यंतर कारणोंसे आपसमें भिन्न २ भी वची तेल और
अग्नि तीनों पदार्थ आपसमें मिल जाते हैं उस समय वह समुदाय एक दीपक कहा जाता है वहां पर ||३|| S|| तीन पदार्थों का संयोग होनेपर तीन दीपक कोई नहीं कहता उसीप्रकार यद्यपि सम्यग्दर्शन आदि तीनों * अपने अपने लक्षणोंसे आपसमें भिन्न हैं तो भी उन तीनोंका समुदाय एक मोक्षमार्ग कहा जा सकता ॥ है, तीनका समुदाय रहनेसे तीन मोक्षमार्ग नहीं कहे जा सकते । और भी यह वात है कि
. सर्वेषामविसंवादात् ॥ २९ ॥ . ____आपसमें अपने अपने लक्षणोंसे पदार्थ भिन्न भी रहें तो भी उन्हें किसी रूपसे एक माननेमें किसी
भी प्रतिवादीको विसंवाद नहीं। जिस तरह सांख्य मतवालों का कहना है कि-सत्वगुण रजोगुण और | तमोगुण इन तीनों गुणों में सत्त्वगुण प्रसन्नता और लाघवस्वरूप है। रजोगुणशोष और तापस्वरूप है। | तमोगुण आवरण करना वा विराधना करना स्वरूप है इसतरह ये तीनों गुण अपने अपने लक्षणोंमे , | भिन्न भिन्न हैं तो भी तीनोंका समुदाय प्रधान पदार्थ एक ही है, तीनका संयोग रहनेसे प्रधानके तीन | भेद नहीं । बौद्धोंका कहना है कि काकवडता आदि चारो भूत एवं वर्ण गंध आदि भूतोंमें रहनेवाले धर्म यद्यपि अपने अपने लक्षणोंकी अपेक्षा आपसमें भिन्न भिन्न हैं तो भी उन सबका समुदायरूप है।
१ पृथ्वी, जल अमि, वायु ।
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