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सहजानन्दशास्त्रमालायां
भूतचेलनद्रव्यसमवायाभावादचेतनं भवद्रूपादिगुणकल्पतामापत्नं न जानाति । यदि पुनर्ज्ञानादधिक इति पक्षः कक्षीक्रियते तदावश्यं ज्ञानादतिरिक्तत्वात् पृथग्भूतो भवन् घटपटादिस्थानीयतामापन्नो ज्ञानमन्तरेण न जानाति । ततो ज्ञानप्रमाण एवायमात्माभ्युपगन्तव्यः ।। २४-२५।। बोधने । प्रातिपदिक ज्ञानप्रमाण आत्मन् न यत् इह तत् तत् आत्म हीन वा अधिक वा ज्ञान ध्रुव एव हीन यदि तत् आत्मन् तत् ज्ञान अचेतनन अधिक वा ज्ञान विना कथं । मूलधातु- भू सत्तायां ज्ञा अव बोधने, चितीसंज्ञाने । उभयपदविवरण णाणप्यमाणं ज्ञानप्रमाणं प्र० ए० या न इह वा जदि यदि कह कथं विणा विना-अव्यय । जस्रा यस्य तरस तस्य षष्ठी एक । सो सः प्र० एक० हीणी हीनः अहिओ अधिक:- प्र० ए० | ग्राणादों ज्ञानात्-पंचमी ए० । हर्वाद भवति वर्तमान सट् अन्य पुरुष एकवचन क्रिया । ध्रुवं ध्रुवं अव्यय । तष्यायं अचेतनं तद्ज्ञानं अमेलनं प्र० एक० जाणादि जानाति वर्तमान अन्य० एक० क्रिया । णा ज्ञानेन - तृतीया एक जाणादि जानाति वर्तमान अन्य पुरुष एकवचन किया ||२४-२५।। वाला ज्ञान अपने आश्रयभूत चेतन द्रव्यका सम्बन्ध न रहनेसे रूपादि गुणको समानताको प्राप्त अचेतन होता हुआ नही जानेगा; और यदि यह आत्मा ज्ञानसे अधिक है ऐसा पक्ष रखा जाता है तो अवश्य ही ( आत्मा ) ज्ञानसे आगे बढ़ जानेसे ज्ञानसे पृथक् होता हुआ घटपटादि जैसी वस्तु सदृशताको प्राप्त हुआ ज्ञानके बिना नहीं जानेगा । इसलिये यह ग्रात्मा ज्ञानप्रमाण ही जानना चाहिये ।
प्रसंगविवरण -- अनन्तरपूर्व गाथा में युक्तिपूर्वक बताया गया था कि ज्ञान सर्वगत है । अब इस गाथा में आत्माको ज्ञानप्रमाण न माननेपर क्या दोष होते हैं उनका वर्णन किया गया है ।
तथ्यप्रकाश ---- ( १ ) प्रदेशापेक्षया श्रात्मा संसारावस्थामें देहप्रमाण विस्तार में है । (२) प्रदेशापेक्षतया श्रात्मा मोक्षावस्था में चरमदेह प्रमाण है । ( ३ ) गुणपेक्षया आत्मा सर्वत्र ज्ञानप्रमाण है । ( ४ ) परमात्माका ज्ञान सर्व ज्ञेयप्रमाण है । ( ५ ) प्रदेशापेक्षया आत्मा कभी बटबीज प्रमाण है । ( ६ ) ग्रात्मा कादाचित्क समुद्घात अवस्थाके सिवाय कभी भी देहसे अधिक नहीं है । ( ७ ) गुणापेक्षया यदि प्रात्मा ज्ञानप्रमाणसे छोटा है तो श्रात्मासे बाहरका ज्ञान चेतन आत्माका आधार न पाने वाला अचेतन हुआ कुछ जान न सकेगा । (८) आत्मा यदि ज्ञानप्रमाणसे अधिक है तो ज्ञानसे बाहरका श्रात्मा ज्ञानशून्य होनेसे कुछ न जान सकेगा ।
सिद्धान्त - - ( १ ) परमात्मा सर्वज्ञेयाकाराक्रान्त है । ( २ ) आत्मा ज्ञान द्वारा सर्व ज्ञेयोंमें गत है ।
दृष्टि--- १ - प्रशुन्यनय ( १७४ ) । २ - सर्वगत नय ( १७१ ) ।
प्रयोग- ज्ञानका स्वतंत्र विलास होने देनेके लिये अपनेको सहज ज्ञानमात्र अनुभवना
॥२४-२५॥
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