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सहजानन्दशास्त्रमालाया प्रथेन्द्रियज्ञानं न प्रत्यक्ष भवतीति निश्चिनोति
परदव्वं ते अक्खा णेव सहावो ति अप्पणो भगिदा । उवलद्ध तेहि कधं पच्चक्खं अपणो होदि ॥ ५७ ॥
इन्द्रिय परद्रव्य कहीं, वे नहिं होते स्वभाव आत्माके ।
उनसे जो जाना वह, आत्मप्रत्यक्ष कैसे हो ॥ ५७ ।। परट्रव्यं तान्यक्षाणि नव स्वभाव इत्यात्मनो भणितानि । उपलब्ध : कार्य प्राधमात्मनो भवति ।। ५७ ।।
प्रात्मानमेव केवलं प्रतिनियतं किल प्रत्यक्षं, इन व्यतिरिक्तास्तित्वयोगितया परद्रव्यतामुपगतरात्मनः स्वभावता मनागप्यसंस्पृशदिरिन्द्रयरुपलभ्योपजन्यमानं न नामात्मनः प्रत्यक्ष भवितुमर्हति ॥ ५७ ।।
नामसंज्ञ-परदन्य त अक्ख व सहाब ति मणिय बलत कार पाचवा गण । धातुसंजभण कथने, हो गत्तायां । प्रातिपदिक----परद्रव्य तत् अक्ष न एव स्वभाव इति आत्मन भणित उपलब्ध तत् कथं प्रत्यक्ष आत्मन् । मुलधात..... भ मसाय, भण शब्दार्थः । उभयपक्षविवरण-... 'परदा परद्रध्य-प्रथमा एक । ते तानि अवखा अक्षामि-प्रथमा बहु | न एच शिनि कयं कथं-अव्यय । महाको स्वभाव:प्रथमा एक० । अपणो आत्मन:--Tठी एकः । भणिदा गणितानि प्रथमा बहु कदन्त किया । उचलखें उपलब्ध-प्र. ० । लेहिं तै:-तृतीया बहु । पञ्चव प्रत्यक्ष-प्रथमा राय । होदि भवति-वर्तमान सट् अन्य पुरुष एकवचन किया । निक्ति (द्रवति अद्र यत् द्रोयति पर्याान् इति द्वयं सभास.....परं च तत् द्रव्यं चेति पर द्रव्यं ।। २७ ।। इन्द्रियज्ञान प्रत्यक्ष नहीं होता।
तथ्यप्रकाश-~-(१) जो केवल आत्माको प्रति नियत हो वह जान प्रत्यक्ष है। (२) इन्द्रियज्ञान भिन्न परद्रध्यरूप अनालमस्पशी इन्द्रियों द्वारा पर पदार्थों को उपलब्ध कर जन्य होने से प्रत्यक्ष नहीं हो सकता । (३) जो ज्ञान प्रत्यक्ष नहीं उसके अनुभव में सहज प्रानन्द नहीं जग सकता । (४) जिस ज्ञानके साथ सहज प्रानन्द नहीं, प्रल्यूत क्षोभ है यह ज्ञान (इन्द्रियज्ञान) हेय है। (५) केवल प्रात्मास ही निष्पन्न होने वाला निराकरण ज्ञान सकलप्रत्यक्ष है न उपादेय है । (६) निरावरण सकलप्रत्यक्ष ज्ञान बाट जोहनेसे नहीं उपलब्ध होता. किन्तु सहज ज्ञानस्वभावमें उपयुक्त होते हुए मग्न होने पर यही सहज ज्ञानस्वभाव स्वयं पूर्ण विकसित होता हुमा केवलज्ञानरूप परिणमता है।
___ सिद्धान्त---(१) इन्द्रियज्ञान क्षोभसे व्याप्त है । (२) अतीन्द्रिय ज्ञान सहज आनन्द से व्याप्त है।
दृष्टि---- १-- उपाधिसापेक्ष अशुद्ध द्रव्याथिकनय [२४] । २- उपाध्यभावापेक्ष शुद्ध