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प्रवचनसार-सप्तदशांगी टीका तत्र शुद्धात्मतत्त्वोपलम्भसंभावनरसिकस्य पुसः शेषोऽन्योऽनुशात्तः परिग्रहों वराक: किं नाम स्यादिति व्यक्त एव हि तेषामाकूतः । अतोऽवधार्यते उत्सर्ग एव वस्तुधर्मो न पुन रपवादः । इदमत्र तात्पर्य वस्तुधर्मत्वात्परमनन्थ्यमेवावलम्ब्यम् ॥२२४॥ न्द्रा:-प्रथमा बहुवचन । णिपडिकम्मत्तं निःप्रतिकर्मत्वं-द्वितीया एकवचन । उद्दिद्दा उद्दिष्टवन्त:-प्रथमा बहुवचन क्रिया। निरुक्ति ... सणं तर्क: तर्क-- अन् तर्क तकरणे चुरादि, दिह्यते उपचीयते यः स देहः दिह + धन दिह उपचये अदादि । समास--जिनेषु दराः जिनवराः तेषां इन्द्राः जिनवरेन्द्राः ।।२२४.....
प्रसंगविवरण... अनंतरपूर्व गाथामें अप्रतिषिद्ध उपाधिका स्वरूप बताया गया था। जब इस माथामें बताया गया है कि परमार्थतः उत्सर्ग ही वास्तविक धर्म है अपवाद नहीं ।
तथ्यप्रकाश-(१) यद्यपि श्रामण्यपर्यायका सहकारी कारण है यह अत्यंत मिला हुआ देह, तथापि है तो परद्रव्य हो, अतः यह देह उपधि अनुग्रहके योग्य नहीं, किन्तु उपेक्षगीय ही है । (२) जब अत्यंत मिला हुमा द्रव्यलिङ्ग वाला देह भी उपेक्ष्य है तब अन्य पृयक् प्रवस्थित पदार्थ शुद्धात्मतत्वोपलब्धिरसिक पुरुषोंको अनुग्रहके योग्य कैसे हो सकते हैं । (३) उत्सर्ग हो पात्मवस्तुका परम धर्म है, अपवाद नहीं, अतः शुद्धोपयोगरूप परमोपेक्षासंयमके बलसे परमनिग्रंन्यता हो आश्रय है ।
सिद्धान्त--(१) सहजात्मस्वरूपके अनुरूप उपयोग हो कल्याणकारी है । Imat . दृष्टि ----- १-- शुद्धभावनापेक्ष शुद्ध द्रव्याथिकानय, परमभावग्राहक द्रव्याथिकनय, शुद्ध परमपारिणामिकभावग्राहक द्रव्याथिकनय (२४ब, ३०, ३० प्र)।
प्रयोग-व्यवहारधर्मसे अपनेको सुरक्षित सुपात्र बनाकर परमनन्थ्यरूप अभेदरलमय निश्चयधर्म से परिणत होनेका पौरुष होने देना ॥२२४।।
___ अब अपवादविशेष कौनसे हैं, सो कहते हैं----[जिनमार्गे] जिनमार्गमें [यथाजातरूपं लिग] यथाजातरूप लिंग [उपकरणं इति भरिणतम्] उपकरण है ऐसा कहा गया है, [च] तथा [गुरुवचनं ] गुरुका वचन, [सूत्राध्ययनं च] सूत्रोंका अध्ययन [च] और [विनयः अपि विनय भी [निर्दिष्टम्] उपकारण कहा गया है।
तात्पर्य--निर्ग्रन्य लिङ्ग, गुरुवचन, सूत्राध्ययन व विनय भी जनमार्गमें उपकरण महा गया है।
टीकार्थ- इसमें जो अनिषिद्ध उपधि अपवादरूप है, वह सभी वास्तवमें श्रामण्यपर्यायके सहकारी कारणके रूपमें उपकार करने वाला होनेसे उपकरणभूत है, दूसरा नहीं । उसके विशेष (१) सर्व प्राहार्यरहित सहजरूपसे अपेक्षित यथाजातरूपत्व के कारण बहिरंग
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