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प्रवचनसार--सप्तदशाङ्गी टीका मुटाणं गहणं उवासणं पोसणं च सकारं । यंजलिकरणं पणाम भणिदं इह गुणाधिगाणं हि ॥२६२॥ श्रमण गुणाधिक श्रमणोंके प्रति उत्थान ग्रहण सत्सेवा ।
पोषण अञ्जलि प्रगमन, सत्कार व विनयवृत्ति करें ।।२६२।। अभ्युत्थानं ग्रहणानुपासनं पोषणं च यत्कारः । अंजलिकरणं प्रणामो भणितमिह गुणाधिकानां हि ।।२६२६॥
श्रमणानां स्वतोऽधिक गुणानामभ्युत्थान ग्रहणोपासनपोषणसत्काराञ्जलिकरणप्रणामप्रवृ. त्तयो न प्रतिषिद्धाः ।।२६२।।
नामसंज्ञ--- अन्भुटाण गहण वासण पोसण च राक्कार अंजलिकरण पणम भणिद इह गुणाधिग हि । धातुसंज-भण कथने । प्रातिपदिक-अभ्युत्थान ग्रहण उपासन पोषण च सत्कार अंजलिकरण प्रणाम भणित इह गुणाधिक हि । मूलधातु-भण शब्दार्थः । उभयपदविवरण- अन्भुटाणं अभ्युत्थान ग्रहण ग्रहणं उवासण उपासनं पोसण पोषणं सरकार सरकारः अंजलिकरणं अंजलिकरणं पणमं प्रणामः-प्रथमा एक० । भणिदं भणित-प्रथमा एक कृदन्त क्रिया । इह च हि-अन्यय । गुणाधिगाणं गुणाधिकानां-पष्ठी बहु । निरुक्ति- अंज्यते इति अंजुलिः (अंज + अलिच्) मंज व्यक्तिम्रक्षणकान्तिमतिषु रुधादि । समासगुणेषु अधिकाः गुणाधिका: तेषां गुणाधिकानाम् ।।२६२॥ की (श्रमणको) उपासनाको प्रवृत्ति सामान्यपने दिखाई गई थी। अब इस गाथामें उन्हींकी उपासनाको प्रवृत्ति कुछ विशेषतया दिखाई गई है ।
तथ्यप्रकाश---(१) अपनेसे अधिक गुण वाले श्रमणको प्राता हुमा देखकर उठकर खड़े होना प्रथम विनय है । (२) स्वतोधिगुणोका अभ्युत्थान द्वारा विनयकर उनको अादरसे स्वीकारना द्वितीय विनय है । (३) उन श्रमणों को विनयपूर्वक हाय जोड़ना प्रणाम करना बैतृतीय विनय है । (४) उन श्रमणोंके गुरगोंकी प्रशंसा करना चतुर्थ विनय है । (५) श्रमणोंकी सेवा वयावृत्त्य करना पञ्चम विनय है । (६) उन श्रमणोंके अशन, शयन प्रादित), का ध्यान रखना छठा बिनय है । (७) विनयभात्र आनेपर उनके अनुकूल अन्य प्रवृत्तियां भी समुचित होतो हैं । (८) श्रमणोको अपनेसे अधिक गुण वाले श्रमणोंकी उक्त विनयप्रवृत्तियाँ अप्रतिषिद्ध हैं. प्रभुने उपदिष्ट की हैं।
सिद्धान्त ...--(१) शुद्ध भावनासे बिशुद्धि बढ़ती है और प्रतिबन्धक कर्म दूर होते हैं । दृष्टि----१ -- शुद्धभावनापेक्ष शुद्ध द्रव्याथिकनय (२४८) ।।
प्रयोग---अपनेसे अधिक गुण वाले श्रमणके प्रति अपने में गुणातिशयाधानको साधनभूत विनयप्रवृत्तियाँ करना ।।२६२।।
अब श्रमणाभासोंके प्रति समस्त प्रवृत्तियों का प्रतिषेत्र करते हैं----[श्रमणः हि] श्रम. गोंके द्वारा [सूत्रार्थविशारदाः] सूत्रार्थविशारद, [संयमतपोजानाध्याः] संयम, तप और ज्ञान