Book Title: Pravachansara Saptadashangi Tika
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 528
________________ 514 सहजानन्दशास्त्रमालायां सात्मिकस्य प्रबचनस्य सारभूतं भूतार्थस्वसंवेद्यदिव्यज्ञानानन्दस्वभावमननुभूतपूर्व भगवन्तमा स्मानमवाप्नोति // 275 / / इति तत्त्वदीपिकायां श्रीमदमृतचन्द्रसूरिविरचितायां प्रवचनसारवृत्ती चरणानुयोग सूचिका चूलिका नाम तृतीयः श्रुतस्कन्धा समाप्तः / / लहुणा लघुना कालेग कालेन-तृतीया एकवचन / निरुक्ति-शुभे मरण सारः (मृ -- घन स गतौ)। समास--साकारो अनाकारा च सा चर्या चेति साकारानाकारचा तया साकारानाकारचर्ययावचनस्य सारः प्रवचनसार: त प्रवंचनसार 275 / / स्वसवेद्य ज्ञानानन्दस्वभाव अन्तस्तत्वका प्रतिभात हो जाना भगवान प्रात्माको उपलब्धि है। सिद्धान्तः– (1) सहजात्मस्वरूपके सचेतन में भगवान प्रात्माको उपलब्धि है। दृष्टि--१-- शुद्धनय (168), ज्ञाननय (164), अगुग्गिनय (188), अनोश्वरनय (186), स्वभावनय (176), नियतिनय (177), शून्यनय (173), अधिकल्पनय (162) / प्रयोग-प्रवचनसार स्थिति (शुद्ध सहजज्ञानानन्द स्थिति) पाने के लिये प्रवचनसार (परमागम.) का अध्ययन मनन बोध प्राप्त करके प्रवचनसार (भगवान यात्मा) की उपलब्धि करना // 25 // इति श्रीमत्कुन्दकुन्दाचार्यप्रणीत प्रवचनसार ग्रन्थ व श्रीमदमृतचन्द्रसूरिविरचित तत्व. दीपिका संस्कृत टीकाके साथ श्रीमत्सहजानन्दकृत सहजानन्दसप्तदशाङ्गी टोका समाप्त / R कम 2. पु. 1 दित्य नाशक्ति धा: :: : 1608 श्री विवि माजी महाराय . .

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